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________________ श्रीकल्प -क्षीणचक्षुर्दर्शनावरणत्व६-क्षीणाचक्षुर्दर्शनावरणत्व८-क्षीणकेवलदर्शनावरणत्व९-क्षीणनिद्रत्व १०-क्षीणनिद्रानिद्रत्व११ -क्षीणप्रचलत्व१२-क्षीणमचलामचलत्व१३-क्षीणस्त्यानर्द्धित्व१४-क्षीणसातावेदनीयत्व१५-क्षीणासातावेदनीयत्व१६ -क्षीणदर्शनमोहनीयत्व १७-क्षीणचारित्रमोहनीयत्व१८-क्षीणनैरयिकाऽऽयुष्कत्व१९-क्षीणतिर्यगायुष्कत्व२०-क्षीणमनुव्यायुष्कत्व२१--क्षीणदेवाऽऽयुष्कत्व२२-क्षीणशुभनामत्व२३-क्षीणाशुभनामत्व२४-क्षीणोच्चगोत्रत्व२५-क्षीणनीचगोत्रत्व२६-क्षीणदानान्तरायत्व२७-क्षीणलाभान्तरायत्व२८-क्षीणभोगान्तरायस्व२९-क्षीणोपभोगान्तरायत्व३०-क्षीणवीर्यान्तरायत्व३१-प्रभृतिनानाविधगुणरत्नराशिः शाश्वतः सिद्धो भविष्यति ॥सू०४३॥ ॥५०६॥ ७-अचक्षुर्दर्शनावरण का क्षय, ८-अवधिदर्शनावरण का क्षय, ९-केवलदर्शनावरण का क्षय, १०-निद्रा का क्षय, ११-निद्रानिद्रा का क्षय, १२-अचला का क्षय, १३-अचलाप्रचळा का क्षय, १४-स्त्यानदि का क्षय, १५-सातावेदनीय का क्षय, १६-असातावेदनीय का क्षय, १७-दर्शनमोहनीय का क्षय, १८-चारित्रमोहनीय का क्षय, १९-नरकायु का क्षय, २०-तिर्यंचायु का क्षय, २१-मनुष्यायु का क्षय, २२-देवायु का क्षय, २३-उच्चगोत्र का क्षय, २४-नीचगोत्र का क्षय, २५-शुभनाम का क्षय २६-अशुभ नाम का क्षय, २७-दानान्तराय का क्षय, २८-लाभान्तराय का क्षय, २९-भोगान्तराय । क्षमा १ भागान्तराय रत्नराशिका क्षय, ३०-उपभोगान्तराय का क्षय, ३१-चीर्यान्तराय का क्षय-इत्यादि अनेक प्रकार के गुणरूपो रत्नों जस्वमफलम की राशि होगा, तथा शाश्वत सिद्ध होगा ॥५०४३॥ (6) यक्षुःश नावनो क्षय (७) अन्य ना२नो क्षय (८) अधिश नावनो क्षय (६) वनाવરણને ક્ષય (૧૦) નિદ્રાને ક્ષય (૧૧) નિદ્રાનિદ્રાનો ક્ષય (૧૨) પ્રચલાને ક્ષય (૧૩) પ્રચલા પ્રચલા ક્ષય (૧૪) ત્યાનદ્ધિને ક્ષય (૧૫) સાતા વેદનીયને ક્ષય (१६) असातावहनीयन। क्षय (१७) शनमा नायनो क्षय (१८) यात्रिमा नायना क्षय (१८) २४ायुन। क्षय (२०) यायुनो क्षय (२१) मनुष्यायुने। क्षय (२२) वायुना क्षय (२३) यगोत्रमा क्षय (२४) नायगाना क्षय (२५) शुलनाभने। क्षय (२६) अशुभनाभनो क्षय (२७) हानान्तरायन क्षय (२८) सतरायने क्षय (२६) ભાગાન્તરાયને ક્ષય (૩૦) ઉપભેગાન્તરાય ક્ષય (૩૧) વીર્યાન્તરાયને ક્ષય- ઈત્યાદિ અનેક પ્રકારના ગુણરૂપી રત્નાને Iशि थे, अने क सि थरी (२०४३) For Private & Personal use Only ॥५०६॥ Jain Education for.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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