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________________ श्रीकल्पसूत्रे ॥४८१॥ Jain Education Inter ४ - लच्छीसुमिणफलं मूलम् — लच्छीदंसणेणं अमू समोसरणलकवणलच्छीउवलक्खिओ भविस्सर १, नाणदंसण सुहवीरियरूत्राणंतच कलकवणं लच्छि वरिस्सर २, जम्मजरामरणाहिबाउले अगाहे भव्वे बोहित्रीयलच्छीपदाग सनाहीकरिस्सर ३, मोक्खमग्गारडगाणं भव्त्राणं साइअनंतं अक्खयं अव्वाबाई धुवं निययं सासयं अहरीकयलोगofच्छ मोक्खलच्छि दाहि ४ ॥० ३४|| ४-लक्ष्मीस्वप्नफलम् छाया - लक्ष्मीदर्शनेन असौ समवसरणलक्षणलक्ष्म्युपलक्षितो भविष्यति ९, ज्ञानदर्शनमुखवीर्यरूपानन्तचतुष्कलक्षणां लक्ष्मीं वरीष्यति २, जन्मजरामरणाऽऽधिव्याकुलाननाथान् भव्यान् बोधीवीजलक्ष्मीमदान सनाथीकरिष्यति ३, मोक्षमार्गाराधकेभ्यो भव्येभ्यः साधनन्ताम् अक्षयाम् अव्यावाघां ध्रुवां नियतां शाश्वतीम् अधरीकृतलोकलक्ष्मीं मोक्षलक्ष्मीं दास्यति ४ ॥ ०३४|| तीन लोक पर अखण्ड शासन करेगा, अर्थात् तीनों लोकों में अन्य तीर्थिकों के धर्मशासन का उन्मूलन करके अपने धर्मका निष्कंटक शासन स्थापित करेगा ॥ ०३३ ॥ ४ - लक्ष्मी - स्वप्नका फल इत्यादि । मूल का अर्थ - ' लच्छीदंसणेणं' लक्ष्मी को देखने से वह (१) समवसरणरूप लक्ष्मी से युक्त होगा । (२) ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य रूप अनन्तचतुष्टय की लक्ष्मी का वरण करेगा । (३) जन्म, जरा, मरण, आधि और व्याधि से व्याकुल अनाथ भव्यों को बोधिबीज-रूपी लक्ष्मी देकर सनाथ करेगा । (४) मोक्षमार्ग के आराधक भव्यों को सादि अनन्त, अक्षय, अव्याबाध, ध्रुव, नियत, शाश्वत, કે ત્રણે લેાકમાં બીજાં તી િકાનાં ધર્માંશાસનને નિમૂળ કરીને પોતાના ધર્માંનું નિષ્કંટક શાસન સ્થાપશે. (સૂ૦૩૩) ૪–લક્ષ્મીના સ્વપ્નનું ફળ भूजना अर्थ - "लच्छीदंसणेण" धत्याहि सक्ष्मीने लेवाथी ते (1) समवसर३यी सक्ष्मीवाण। थशे. (२) ज्ञान, दर्शन, सुख भने वीर्य३५ अनंत चतुष्टयनी लक्ष्मीनु व२५ १२थे. (3) ४-५, ४२रा, भर, खाथि अने વ્યાધિથી વ્યાકુળ અનાથ ભવ્યેને બેધિષીરૂપી લક્ષ્મી દઈને સનાથ કરશે. (૪) મેાક્ષમાના આરાધક ભવ્યેાને For Private & Personal Use Only कल्प मञ्जरी टीका लक्ष्मीस्वम फलम्. ॥४८१॥ www.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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