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________________ श्रीकल्प सूत्रे वहिस्सइ २। सुयचारित्तलक्खणं धम्मारामं अमोहधाराए सुहाधाराए गिराए सिंचंतो पुफियं फलियं च करिस्सा३। पवित्ते भरदखित्ते खिचे सग्गापवग्गमुहसंपायणाबीयं बीयं बोहिवीयं बाविस्सइ ४ ॥मू०११०॥ २-वृषभस्वप्नफलम् । छाया- ऋषभदर्शनेन असौ वृषभराजः शकटधुरामिव धर्मधुरां धरिष्यति १। सारमुदारं तपःसंयमभारं वक्ष्यति २। श्रुतचारित्रलक्षणं धर्माऽऽरामम् अमोघधारया सुधाधारया गिरा सिञ्चन् पुष्पितं फलितं च करिष्यति ३। पवित्रे भरतक्षेत्रे क्षेत्रे स्वर्गापवर्गसुखसम्पादनाबीजं बीजं बोधिवीजं वप्स्यति ४ ॥सू० ३२॥ टीका-'उसभदंसणेणं' इत्यादि। ऋषभदर्शनेन असौ, वृषभराज श्रेष्ठटपभः शकटधुरामिव-शकट कल्पमञ्जरी ॥४७८॥ टीका वृषभस्वस २-वृषभ स्वप्न का फल ___ मूल का अर्थ-'उसभदंसणेणं' इत्यादि । वृषभ का स्वम देखने से-(१) जैसे श्रेष्ठ वृषभ शकट की धुरा को धारण करता है, उसी प्रकार वह धर्म की धुरा को धारण करेगा। (२) सारभूत और उदार तप एवं संयम के भार को वहन करेगा। (३) श्रुत-चारित्र धर्मरूपी बगीचे को अमोघ धारा तथा अमृत धारा के समान वाणी की धारा से सीचेगा और उसे फूल-फलवान् बनाएगा। (४) पवित्र भरतक्षेत्र रूपी क्षेत्र में स्वर्ग और अपवर्ग की प्राप्ति के कारण बोधवीज रूप बीज को बोएगा ॥९० ३२॥ टीका का अर्थ-'उसभदंसणे' इत्यादि । वृषभ के देखने से वह बालक धर्मरूपी शकट की धुरा को उसी २-वृषभना सजन ३ भूजन अर्थ-"उसभदसणेण" त्याल. वृषमनु २८ नेपाथी (१) रेभ | वृषभ धूसरीन ધારણ કરે છે, તેમ તે ધર્મની ધુરાને ધારણ કરશે. (૨) સારભૂત અને ઉદાર તપ અને સંયમના ભારને વહન કરશે. (૩) શ્રુત-ચારિત્ર-ધર્મરૂપી બાગને અમેઘ ધારા યુક્ત અમૃતની ધારા જેવી વાણીની ધારાથી સીંચશે અને તેને કૂલફળવાળે બનાવશે. (૪) પવિત્ર-ભરતક્ષેત્રરૂપી ક્ષેત્રમાં સ્વર્ગ અને અપવર્ગની પ્રાપ્તિના કારણરૂપ બેધબીજરૂપ બીજને વાવશે (સૂ૦૩૨) नाम-'उसमदंसणेणत्या पक्षनु २१नवाथी ते मा ३५ गाडानी सरीन मे प्रभार ॥४७८॥ Jain Education tional www.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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