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________________ श्रोकल्प सूत्रे ॥४६॥ न्तीभिरिव ज्वालामालाभिः संयुक्तं ज्वाल-जालो-ज्ज्वल-पृथुल-गगनावण्डमिव पतन्तम् अतिविपुलवेगवन्तं तेजोनिधि शिखिनं पश्यति ॥०२८॥ टीका-'तो पुण सा विउल' इत्यादि । ततः रत्नराशिस्वमदर्शनानन्तरं, पुनः चतुर्दशे स्वप्ने सात्रिशला शिखिनंम्वहिं पश्यति, कीदृशं शिखिनम् ? इत्याह-विपुल-मञ्जुल-पिङ्गल-मधु-वृता-विच्छिन्न-धाराऽभिषिच्यमान-विधूत-धम-धगधगिति-ज्वलदु-ज्ज्वल-ज्वाल-जाल-ललाम-तत्र-विपुलमञ्चले अतिप्रशस्ते पिङ्गले% रक्तपीतवर्णे च ये मधुघृते तयोरविच्छिन्नधारया निरन्तरधारया अभिषिच्यमानः हूयमानः, विधूतधमः= निर्धूमः, धगधगिति=अतिशयितं ज्वलन्-प्रज्वलितो भवन् उज्ज्वल-ज्वाल-जालललामः परमशिखा-समूह-शोभितश्च यस्तम्, तथा-विमल-तेजोभिराम-विमलं-निर्मलं यत् तेजः प्रकाशस्तेन अभिराम शोभनम्, तथा-तारत मञ्जरी टीका धग करके जलती हुई, उज्ज्वल ज्वालाओं के समूह से सुन्दर, निर्मल तेज से रमणीय, तरतमता के साथ ऊपर को उठती हुई, मानो आपसमें मिलन कर रही हो ऐसी, ज्वालामालाओं से युक्त, ज्वालाओं के समूह से प्रकाशमान, विशाल नीचे गिर रहे आकाश-खण्ड के समान, अत्यन्त तीव्र वेग से युक्त, प्रकाश-पुंज अग्नि को देखा ॥ सू०२८॥ टीका का अर्थ-'तओ पुण सा विउल इत्यादि । रन-राशि का स्वम देखने के पश्चात चौदहवें स्वप्न में त्रिशला देवीने अग्नि देखी। वह अग्नि कैसी थी, सो कहते हैं वह अत्यन्त मनोहर लाल-पीले रंग की, मधु एवं घृत की लगातार धार से सिंचित की जानेवाली, धम-वर्जित, धग-धग करके जलती हुई तथा उज्ज्वल ज्वालाओं के समूह से शोभित थी। निर्मल तेज के शिखिस्वमवर्णनम्. ॥४६॥ વિરાજીત, નિર્મળ તેજથી રમણીય દેખાતા, તરતમતાવાળા, જવાળાઓની માળાએથી યુક્ત, જવાળાએથી દેદીપ્યમાન, તીવ વેગથી નીચે પડતાં આકાશના ખંડ સમાન, અગ્નિના પુંજને, ત્રિશલા રાણીએ, જે (સૂ૨૮) नअथ -'तओ पुण सा विउल.' त्याहि. नाशिनु जया पछी यौहमा २१नामा निशा દેવીએ અગ્નિ જે. તે અગ્નિ કે હતા, તે કહે છે– અત્યંત મનોહર, લાલ-પીળા રંગને, મધ અને ઘીની લગાતાર ધારા વડે સિંચિત કરાએલ, ધૂમાડાથી પણ રહિત, ધગ ધગાટ કરીને જલતે તથા તેજસ્વી જવાળાઓના સમૂહ વડે શેતે હતે. નિર્મળ તેજને લીધે સુંદર પૈકી Jain Education int onal For Private & Personase Only www.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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