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________________ श्रीकल्पसुत्रे ॥४६२|| 武道演風暴 म्ययोगैः उच्छलन्तीभिः=ऊर्ध्वं गच्छन्तीभिः अन्योऽन्यं = परस्परं मिलन्तीभिः इवेत्युत्प्रेक्षा, ज्वालामालाभिः = शिखासमूहैः संयुक्तं = समन्वितं तथा-ज्वाल - जालो - ज्ज्वल - पृथुल - गगन - खण्डमित्र - ज्वालजालेन - शिखासमूहेन उज्ज्वलं= प्रकाशमानं पृथुलं= विशालं गगनखण्डम् = आकाशभागमित्र पतन्तम् = अध आगच्छन्तम् अतिविपुल वेगवन्तम् = अतिशयितोत्कृष्ट वेगयुक्तम्, तेजोनिधिं प्रकाशपुञ्जं शिखिनं = वह्निम् पश्यति ||० २८|| मूलम् — एवं सा तिसला खत्तियाणी इमे एयारूवे चउदस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणी हा चित्तमादिया पीरमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया धाराहयकर्यवपुष्कगं पित्र समुस्ससियरोमका सुमिणुग्गहं करेइ, करिता सयणिजाओ अब्भुद्रेइ, अन्भुट्टित्ता अतुरियमचवलमसंभंताए अविलंबिया रायहंसस रिसीए गईए जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए तेणेव उवागच्छर, उनागच्छित्ता ताहिं इहाहिं कंताहिं पियाहि मन्नाहिं मणामाहि ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहि धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहि हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिजाहि मियमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संलवित्ता पडिबोहेइ ॥ सू०२९ ॥ कारण रमणीय प्रतीत हो रही थी । उसकी ज्वाला - मालाएँ तरतमता से ऊपर की ओर उठ रही थीं । वह ऐसी जान पड़ती थी जैसे आपस में मिल रही हों या मिलने के लिए लपक रही हों ! ( यह उत्प्रेक्षालंकार है ।) अथवा वह अग्नि ऐसी प्रतीत होती थी, मानो ज्वालाओं के समूह से प्रकाशमान विशाल आकाशखण्ड नीचे गिर रहा हो । वह उत्कृष्ट वेगवाली और तेज का निधान थी । त्रिशला देवीने चौदहवें स्वप्न में पूर्वोक्त प्रकार की अग्नि देखी || सू०२८|| લાગતા હતા. તેની જવાળારૂપી માળાએ ક્રમે ક્રમે ઉપરની બાજુ જતી હતી. તે એવી લાગતી હતી કે જાણે અન્યાન્ય મળતી હોય અથવા તેા મળવાને માટે તરાપ મારતી હાય! (આ ઉત્પ્રેક્ષા અલંકાર છે) અથવા તે અગ્નિ એવા લાગતા હતા કે જાણે જવાળાઓના સમૂહથી પ્રકાશમાન વિશાળ આકાશ-ખડ નીચે પડતા હાય ! તે ઉત્તમ વેગ Jain Education In a Sonal तेन निधान तो त्रिशा देवी यौद्रयां स्वप्नयां सेवा व्यथिने लेयेो (२०२८) 寳寳寳展 कल्प मञ्जरी टीका शिखिस्वप्नवर्णनम्. ||४६२|| * www.jainelibrary.org.
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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