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श्रीकल्प
पितानि=सुशोभितानि चत्वारि द्वाराणि यस्य तम्, तथा-अष्टोत्तरसहस्र-मणिस्तम्भ-प्रभा-विडम्बित-सहस्रकरम्अष्टोत्तरसहस्रम् अष्टाधिकसहस्रसंख्यका ये मणिस्तम्भाः चैर्यादिमणिरचितस्तम्भाः तेषां प्रभाभिः विडम्बित:= तिरस्कृतः सहस्रकरः मूर्यों येन तम्, तथा-विविधशोभाधरंबहुपकारकशोभाधारकम्, तथा-विमल--शङ्खतल-दधिघन-गोक्षोरफेन-रजतनिकर-निर्मल-प्रकाशं-विमलाः =शुभ्रा ये शङ्कतल-दधिधन-गोक्षीरफेन-रजतनिकराः तद्वद् निर्मलः प्रकाशो यस्य तम्, तथा-जाज्वल्यमान-दिव्य-तेजःपुञ्ज-संकाशं-जाज्वल्यमानः अतिप्रकाशमानो यो दिव्यः शोभनः तेजःपुञ्जः तेजःसमूहः तत्संकाशं तत्सदृशम्, तथा-मृग-महिष-वराह-छगल-दर्दुरइय-गज-गवय-भुजग-खड्ग-वृषभ-नर-मकरादि-जलचर-किन्नर-सुर-चमर-सिंह-शार्दूला-टापद-वनलता-कमल
मत्र
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रत्नों से तथा मोतियों के बने तोरणों से विभूषित थे। वैडर्य आदि मणियों के बने एक हजार आठ स्तंभों की प्रभा से वह सूय का भी तिरस्कार करता था। वह विविध प्रकार की शोभा से सम्पन्न था। शुभ्र शैख के सदृश, जमे हुए दही के सदृश, गोदुग्ध के फेन के सदृश तथा चांदी की राशि के सदृश उसका प्रकाश था। वह ऐसा प्रतीत होता था, मानो अत्यन्त प्रकाशमान लोकोत्तर तेज का पुंज हो। वह हिरण, भैंसा, शूकर, बकरा, मेंढक, घोडा, हाथी, गवय, (गाय के समान-रोझ नामक जंगली पशु), सर्प, गेंडा, वृषभ, नर, तथा-मगर आदि जलचर, किन्नर (देवविशेष), सुर (देव), चमर (एक तरह का पशु), सिंह, व्याघ, अष्टापद (सरभ नामक एक जंगली पशु), वनलता (वन में उत्पन्न बेल), कमललता (कमल के फूलों की वेल) आदि के अद्भुत चित्रों से दर्शकों के चित्त को सन्तोष प्रदान करता था। उसमें सुन्दर
है देवविमान
स्वमवर्णनम्.
મણીથી બનેલા એક હજાર આઠ સ્તંભેનાં તેજ વડે તે સૂર્યને પણ મહાત કરતું હતું. તે વિવિધ પ્રકારની શોભાવાળું હતું. સફેદ શંખના જે, જમાવેલા દહીંના જે, ગાયના દૂધનાં ફીણના જેવો તથા ચાંદીના ઢગલા જે તેને પ્રકાશ હતે. તે જાણે અત્યંત પ્રકાશમાન અપાર્થિવ (લોકેત્તર) તેજને પુંજ હોય તેવું લાગતું હતું. તે હરણ, मेंस, भूड, म४२१, ३४, घोडा, साथी, १५ (आयना रानामनु मी प्राणी), सर्प, में, वृषभ, न२, तथा भा२ मा ४५५२, (२ (हेवनी मे लत), सुर (३१), यम२ (मे त ५४), सिं, पाय, अटा.
પદ (સરભ નામનું એક જંગલી પશુ), વનલતા (વનમાં પેદા થતી વેલ), કમળલતા (કમળનાં ફૂલોની વેલ) આદિના છે, અદૂભુત ચિત્રથી જોનારાઓનાં ચિત્તને સંતોષ આપતું હતું. તેમાં સુંદર તાલ (ગીતકળાની ક્રિયાનું માન અને
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