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________________ श्रीकल्पमूत्रे ॥४१४॥ - 试 Jain Education Internat छाया - ततः पुनः सा उच्च-विराजित -स्थान- कृतासनां दिव्य-नव्य-भव्याननां कर-चरण - संस्थित स्वस्तिक - शङ्खा - ङ्कुश - चक्रादि - शुभ - रेखां सुकुमार-करशाखा - लेखां जात्याञ्जन-भ्रमर - जलधरनिकर - रिष्टकगवल-गुलिक - कज्जल - रोचि :- सम-संहित- तनुतर - मृदुल- मञ्जुल - रोमा-बलिं स्फीत-नवनीत- चिकण- पाणिरुहावर्लि कनक - कच्छप-पृष्ठ- पृष्ट - विशिष्ट - चरणयुगलां कुण्डल - परिमण्डित - ललित-कपोल - मण्डलां स्फार - हार-राजमान - सार्वर्तुक - सुगन्धि-कुसुम - ललाम-दाम- परिणद्ध - वक्षःस्थलाम् उन्नत - मांसल - मृदुल - तनुलतां मञ्जल - मणिगण ४ - लक्ष्मी का स्वप्न मूल का अर्थ — 'तओ पुण सा उच्चविराइय' इत्यादि । तत्पश्चात् त्रिशला देवी ने चौथे स्त्रम में लक्ष्मी को देखा। उसका वर्णन इस प्रकार है-वह लक्ष्मी उच्च तथा सुशोभित स्थान पर विराजमान थी । उसका मुख दिव्य, नव्य और भव्य था । उसके हाथों-पैरों में स्वस्तिक, शंख, अंकुश तथा चक्र आदि की शुभ रेखाएँ अंकित थीं। वह सुकुमार उंगलियों वाली थी। उसकी रोमावली उत्तम आंजन, भ्रमर, मेघपटल, अरिष्ट- कालारत्नविशेष, भैंस के सींग, नील और कज्जल के समान आभावाली एक सरीखी, आपस में मिली हुई बहुत बारीक, मृदुल और मनोहर थी। स्वच्छ मक्खन के समान चिकने न थे। उसके दोनों चरण स्वर्णमय कछुवे की पीठ के समान पुष्ट और विशिष्ट थे । सुन्दर कपोलों पर कुण्डल सुशोभित हो रहे थे । वक्षस्थल पर विशाल मुक्ताहार तथा शोभायमान सर्वऋतुसंबंधी कुसुमों की ૪-લક્ષ્મી સ્વપ્ન भूझना अर्थ - ' तो पुण सा उच्चविराहय इत्याहि थोथा स्वग्नमां, त्रिशमा राष्ट्रीये, लक्ष्मीने જોયાં. આ લક્ષ્મી દેવી, સુોભિત સ્થાન ઉપર વિરાજ્યાં હતાં. તેમનુ' મુખ દિવ્ય અને ભવ્ય હતુ. तेना हाथ-पत्रमा स्वस्ति, शंभ, अंकुश तथा यहुनी शुभ रेखाओ हती. तेनी सांगतियो अमाइती. તેના ખાલ કાળા ભમર જેવા, મેઘસમાન, અગ્નિાના રંગ જેવા, કાળા રત્ન સમાન, ભેંસના શિંગડા જેવા અને કાજળ સરીખા હતાં. તેનાં નખ લાલધુમ અને વારીક હતાં. તેના ચરણા કાંચવાની પીઠ જેવા પુષ્ટ અને વિશિષ્ટ હતાં. બેઉ ગાલે પર કુંડલ શે।ભી રહ્યાં હતા. છાતીપર વિશાળ મુકતાહાર અને હમેશાં તાજી રહી શકે તેવી नीतीश ने मनोजबी कल्प मञ्जरी टीका लक्ष्मीस्वमवर्णनम्. ॥४१४॥ www.jainelibrary.org.
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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