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श्रीकल्प
कल्पमञ्जरी टीका
॥४१०॥
मूषा-लसदा-वर्तमाना-मल-कनक-शकल-वर्तुल-विमल-चपला-चिडम्बिनयनं कृश-कटि-तटं विशाल-स्थूल-सुन्दरो-रुं मांसल-विशाल-बन्धुर-स्कन्धं मृदुलतम-सुलक्षण-मसूण-जटिल-केसर-निकर-करम्बित-ग्रीवं कुण्डलितो-दश्चिताकिश्चिदा-स्फालित-विलोल-लागल-मण्डलं खरतर-नखर-शिखरं सौम्यं सौम्याऽऽकारं लीला-ललाम-स्फालमम्बरतलादुच्छलन्तं निज-मुख-कुहरमभिपतन्तं सिंह पश्यति ॥मू०१७॥
टीका-'तओ पुण सा' इत्यादि । ततः वृषभस्वप्रदर्शनानन्तरं पुनः तृतीयस्वप्ने सा-त्रिशला सिंह पश्यतीति सम्बन्धः, कीदृशं सिंहमित्याह-सलिल-बिन्दु-कुन्दे-न्दु-नुषार-गोक्षीर-हार-दकरजः-पाण्डुरतरं; उसके नेत्र धधकती हुई आगमें रक्खे हुए मृषा (सोने को गलाने का मिट्टी का पात्र) में सुशोभित होनेवाले तथा गोलाकार घूमनेवाले निर्मल स्वर्ण खण्ड के समान गोल और दमकती हुई दामिनी अर्थात् चमकती हुई बिजली को भी तिरस्कृत करनेवाले थे। उसकी कमर पतली थी। जंघाएँ विशाल, स्थूल और सुन्दर थीं। स्कंध (कंधा) मांसल, विशाल और सुन्दर था । उसको गर्दन, अत्यन्त नरम, सुहावने चिकने और लम्बे केसरों से युक्त थी। उसकी पूंछ गोलाकार, ऊँची उठाई हुई, लम्बी और चपल थी। नाखूनों की नोंक खब तीखी थी। वह सौम्य तथा सौम्य आकार वाला था। उसकी उछाल में कलामय लालित्य था। ऐसे सिंह को आकाशतल से उछलते हुए और अपने मुखरूपी गुफामें प्रवेश करते हुए देखा ॥२०१७॥
टीका का अर्थ-'तो पुण सा' इत्यादि। वृषभ का स्वप्न देखने के पश्चात् त्रिशला देवी ने तीसरे स्वप्न में सिंह देखा। वह सिंह कैसा था, सो बतलाते है-वह सिंह, जल के बिन्दु, कुन्द के फूल ધકકતી કૂડી સમાન હતાં, તથા ગેળ અને ચમકદાર હતાં. તે સિંહ પાતળી કમરવાળો હતે. તેની જાંઘ વિશાળ, સ્થૂલ, અને ઘટાદાર હતી. ખાંધ માંસથી ભરપૂર હતી. ગરદન અત્યંત નરમ, શેહામણી અને ચમકદાર કેશવાળેથી યુકત હતી. તેનું પૂંછડુ ગળાકાર, છેડા પર દટ્ટાવાળું, અને હલન-ચલનવાળું હતું. નખ ઘણા તીક્ષણ અને લલાશથી ભરેલાં હતાં. તે જ્યારે કુદતે ત્યારે, લાલિત્ય અને કલામય લાગતે.
આકાશમાંથી કૂદતાં ઉપરોકત ગુણવાળે સિંહને, પિતાના મોઢામાં પ્રવેશ કરે, ત્રિશલારાણીએ यो. (सू०१७)
टनम-'तओ पुण सात्याहि पातु २१ नयां पछी निमावीत्री भनिनयो.स થી કે હતા તે બતાવે છે તે સિંહ જળના બિન્દુઓ, કન્દનાકલ, ચન્દ્રમા.હિમ.ગાયના દૂધ, મોતીઓના હાર. તથા સકમ )
सिंहस्वन
वर्णनम्.
॥४१०॥
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