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श्रीकल्प
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॥४०६॥
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तेषां यद गर्जितघोषस्तद्वद गम्भीर सान्द्रः मञ्जः मनोहरो निनदोघोषो यस्य स तथा तम्, तथा-नयनसुखद नेत्राहादजनक-सुन्दरमित्यर्थः, तथा गजवर-सकल-लक्षण-लक्षितं-गजवराणांबाजराजानां यानि सकलानि सर्वाणि लक्षणानि तैलक्षित युक्तं, तथा-बरोरु-सुन्दरोरुं, तथा-मङ्गलं-मङ्गलकारकत्वान्मङ्गलस्वरूपं करिवरंगजराज पश्यति= विलोकते ॥सू०१५॥
२-उसभसुमिणे मूलम्-तओ पुण सा धवल-कमल-दल-कयंबगा-तिग-देह-कति रोई-चओ-वहारेहि सवओ समंता वियासयंतं पप्फुरंत-कंति-मंसल-विशाल-ककुयं, तणुतम-विसद-सुकुमाल-लोम-मसिण-जुइ, निच्चल-सुबद्ध-मंसल-पिच्छलसुविभत्त-मंजुलंग, घणावत्त-णिद्ध-मणहर-निसिय-विसाल-सिंग, संतं दंत समाण-सोहमाण-विमल-दंत सयलगुण-समन्त्रियं हिम-सेल-सनिहं वसहं पासइ ।।मू०१६॥
२-वृषभस्वप्नः छाया-ततः पुनः सा धवल-कमल-दल-कदम्बका-ऽतिग-देह-कान्ति, रोचिश्चयोपहारैः सर्वतः सम
वृषभस्वमन्ताद् विकाशयन्तं, प्रस्फुर-कान्ति-मांसल-विशाल-ककुदं, तनुतम-विशद-सुकुमार-लोम-मसूण-द्युति, निश्चल
वर्णनम्. था। गज के सब लक्षणों से सहित था। सुन्दर जांघों वाला था तथा मंगलकारी होने के कारण मंगल रूप था। त्रिशला क्षत्रियाणी ने ऐसे गज को पहले स्वप्न में देखा ।।मू०१५।।
२-वृषभ-स्वप्न मूल का अर्थ-'तओ पुण सा' इत्यादि । तत्पश्चात त्रिशला क्षत्रियाणी ने श्वेत वर्ण के कमल-पत्रों के समुदायसे भी बढ़कर शरीर की कान्ति वाले, किरणों के समूह के प्रसार से चारों ओर प्रकाश करते हुए, दमकती हुई कान्ति से युक्त, पुष्ट एवं विशाल ककुद (कांधले-बंधोल) वाले, अत्यन्त बारीक, निर्मल और सूकुमार रोमों હતે. સુંદર જા વાળો હતે, તથા મંગળકારી હેવાને કારણે મંગળરૂપ હતે. ત્રિશલા ક્ષત્રિયાણીએ આવા ગજને पा २१नमा नये. (सू०१५)
॥४०६॥ २-वृषभ-स्पन भूजनामर्थ-'तओ पुण सा' त्याह. पडेला २१ मानिशाणी, श्वेता भणपत्रोना सभूया अधिक ની કાંતિવાળ, કિરાના સમૂહના પ્રસરણથી ચારેતરફ ફેલાતા પ્રકાશ સમાન, ચમકતી વિજળી સમાન, હૃષ્ટપુષ્ટ, વિશાળ .
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