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श्रीकल्पसूत्रे ३९१ ॥
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भास्वरक मलक-नक्त-कुरुक्त-लिम्ब सिंहकेसरा-च्छादिते सुविरचितरजखाणे रक्तांशुकसंवृते सुरम्ये जिनक - रूत- बूर-नवनीत तूल-स्पर्श-मृदुके प्रासादीये दर्शनीये अभिरूपे प्रतिरूपे शयनीये तस्मिंस्तादृशे सुखं शयाना पूर्वरात्रा - पररात्र - कालसमये सुप्रजागरा निद्रान्ती निद्रान्ती इमानेतद्रूपान् उदारान् कल्याणान् शिवान् धन्यान् मङ्गल्यान् सश्रीकान् हितकरान् सुखकरान् प्रीतिकरान् चतुर्दश महास्त्रमान् दृष्ट्वा प्रतिबुद्धा । ते खलु
जता था । उस पर कसीदा काढ़े हुए क्षौम वस्त्र का आच्छादन था । वह सेज आस्तरक (आच्छादक वस्त्र), मलक (बिछाने का वस्त्र), नवत ( ऊनी बिछाने का वस्त्र), कुसक्त (एक प्रकार का बिछौना), लिम्ब (मेढ़े के बच्चे की न का बिछौना) तथा सिंह केसर (गलीचा) से युक्त थी, सुन्दर बनावट के रजस्त्राण (धूल से रक्षा करने वाले वस्त्र) से सहित थी । उस पर मच्छरदानी तनी हुई थी । अतिशय रमणीय थी। आजिनक (मुलायम चर्मवस्त्र), कपास की रुई, बूर नामक वनस्पति, मक्खन तथा आक-सेमल आदि की रुई के समान मुलायम स्पर्शवाली थी । वह दर्शकों के मन में प्रमोद उत्पन्न करती थी, नेत्रों को सुख देने वाली थी, पुनः पुनः दर्शनीय थी। उसे देखते-देखते तृप्ति नहीं होती थी । असाधारण रूप से सुन्दर थी ।
ऐसी सेज पर सुख से सोती हुई त्रिशलादेवी ने मध्य रात्रि में, हल्की निद्रा लेते समय आगे कहे उदार, कल्याणरूप, शिवरूप, धन्य, मंगलमय, लक्ष्मीजनक, हितकर, सुखकर, तथा प्रीतिकर चौदह महास्वम
આ શય્યા પર ભરતકામવાલા રેશમી વસ્રો આચ્છાદિત હતાં. આ શય્યા, અસ્તરે (આચ્છાદક વસ્ત્ર), મલક(पाथरवाना वस्त्र), नवत - ( पाथरवाना अनी बख) हुअा - (ये! प्रारना पाथरवाना वस्त्र), सिंग- ( घेटाना स्थानी अननेो बख), तथा सिड डेशर - ( गाणीया ) थी युक्त हुती. या 'भुखायभता'नु' घूमना २४४ सामे रक्षा ४२वा, એક સુંદર વસ્ત્ર પાથરવામાં આવતું. તેની પર મચ્છર આદિ જીવજંતુથી રક્ષણ મેલવવા એક મચ્છરદાની રહેતી. આ મચ્છરદાની, ચર્મ વજ્ર જેવી કામલ, કપાસના રૂ જેવી સુવાલી, ખૂર નામક વનસ્પતિ જેવી મુલાયમ ચલકાટવાળી, માખણ જેવી પાચા સ્પવાળી હતી.
આ કાપડ, જોવા માત્રથી પ્રમેાદ કરવાવાળું, નેત્રને એકાકાર કરવાવાળુ, અને દČનીય હતું, આવી સુખમય શય્યામાં સૂતેી ત્રિશલા રાણીએ, મધ્યરાત્રિએ, અનિદ્ર અવસ્થામાં, ઉદાર કલ્યાણમય શિવ સુખકારી, મંગલમય, હિતકર, પ્રીતિકર એવા ચૌદ સ્વપ્ના જોયાં, તેના નામ નીચે પ્રમાણે—
कल्पमञ्जरी
टीका
राजभवनवर्णनम् .
।।३९१ ।।
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