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________________ श्रीकल्प मुत्रे ॥३७७॥ कल्पमञ्जरी णायः। तच्छयः खलु ममापि श्रमण भगवन्त महावार चरमतथिकरं पूर्वतीथकरनिर्दिष्टं ब्राह्मणकुण्डग्रामे नगरे ऋषभदत्तस्य ब्राह्मणस्य भार्याया देवानन्दाया ब्राह्मण्याः कुक्षितः क्षत्रियकुण्डग्रामे नगरे ज्ञातानां क्षत्रियाणां सिद्धार्थस्य क्षत्रियस्य काश्यपगोत्रस्य भार्यायास्त्रिशलायाः क्षत्रियाण्या वाशिष्ठसगोत्रायाः कुक्षौ गर्भतया संहारयितुम् । तत्-तस्माद् हेतोः- हे देवानुप्रिय ! त्वं गच्छ, गत्वा ब्राह्मणकुण्डग्रामे नगरे निवसत ऋषभदत्तस्य ब्राह्मणस्य भाया देवानन्दायाः कुक्षितः उदरात् क्षत्रियकुण्डग्रामे स्थितस्य ज्ञातानां क्षत्रियाणां कुलोद्भवस्य सिद्धार्थस्य क्षत्रियस्य काश्यपगोत्रस्य भार्यायास्त्रिशलायाः क्षत्रियाण्याः वाशिष्ठसगोत्रायाः कुक्षौ गर्भतया श्रमणं भगवन्तं महावीरम् अव्यायाधं-न विद्यते व्यावाधा-पीडा यत्र तत्-पीडारहितम्, अक्लमम्-न विद्यते क्लम परिश्रमो यत्र तत्-परिश्रमरहितम्, अग्लानम्-ग्लानं खेदः, तन्नास्ति यत्र तत्-खेदवर्जितम्, अम्लानम्-नास्ति म्लानंम्प्रभाहानियत्र तत्-तेजोहानिरहितं च यथा स्यात्तथा यतनया यतमानः सन् संहर। योऽपि च खलु स त्रिशलायाः टीका हरिणैगमे पिणं प्रति म गर्भसंह रणाय शक्रर स्यादेशः। देवेन्द्रों देवराजों का यह जीत व्यवहार है कि वे अहंत भगवंतों को अन्तकुलों से यावत् ब्राह्मणकुलों से उग्रकुलों या ऐसे ही किन्हीं अन्य विशुद्ध जाति-कुल-चाले वंशों में बदल दें। सो हमारे लिए भी यही उचित है कि चरमतीर्थकर तथा पूर्ववर्ती तीर्थंकरों द्वारा निर्दिष्ट श्रमण भगवान् महावीर को ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के निवासी ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या देवानन्दा ब्राह्मणी के उदर से क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के निवासी ज्ञात-नामक क्षत्रियों के वंश में उत्पन्न सिद्धार्थ क्षत्रिय काश्यपगोत्रीय की पत्नी वाशिष्ठगोत्र वाली त्रिशला क्षत्रियाणी के उदर में बदल दें। तथा त्रिशला क्षत्रियाणी का जो गर्भ है, उसे भी देवानन्दा ब्राह्मणी के उदर में गर्भ के रूप में बदल दें। इस कारण हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ और ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर में बसने वाले ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या देवानन्दा के उदर से, क्षत्रियकुण्डग्राम नगर में स्थित ज्ञात क्षत्रियों के कुल में उत्पन्न सिद्धार्थ क्षत्रिय काश्यपगोत्रीय की पत्नी वाशिष्ठगोत्रीय त्रिशला क्षत्रियाणी के उदर में श्रमण भगवान् महावीर को यतना के साथ इस प्रकार बदल दो कि उन्हें पीडा न पहुँचे, श्रम न हो, खेद न हो, उनकी तेजोहानि न हो, और जो त्रिशला क्षत्रियाणी का गर्भ है, उस गर्भ को भी देवानन्दा ॥३७७|| ઉપરોક્તકુળાકુળને વિચાર અને નિર્ણય કરી પોતાની ફરજ સમજી શકેન્દ્ર ગર્ભનું સુખે સમાધે સંહરણ કરનાર હરિર્થગમેલી દેવને બોલાવ્યો ને આ પ્રમાણે મૂળમાં કહ્યા પ્રમાણે “સંહરણ' કરી ત્રિશલા માતાની કુખે, મારે Jain Education a nal 3 Nirww.iainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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