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________________ मञ्जरी टीका पराभोगकुलपमस्वामिना गुरुरूपेण स्थापिता मागास्तषा कुलषु, राजन्यकुलषु-मित्रस्थान स्थापिता राजन्यास्तषा कुलेषु, इक्ष्वाककुलेषु-इक्ष्वाकवा क्षत्रियविशेषास्तेषां कुलेषु, हरिवंशकुलेषु पूर्व वैरिदेवानीतहरिवर्षक्षेत्रयुगलस्य वंशो हरिवंशस्तस्य कुलेषु, ज्ञातकुलेषु-ज्ञाता उदारक्षत्रियास्तेषां कुलेषु, अन्यतमेषु वा तथाप्रकारेषु विशुद्धजातिश्रीकल्प कलवंशेषु-विशुद्ध-निर्मले जाति:-मातृको वंशः कुलं-पैतृको वंशश्च यत्रैवंविधेषु वशेषु संहारणीयाः समुपस्थापमूत्र ॥३७५॥ यितव्याः। तत्-तस्माद्धेतोः श्रेयः उचितं खलु ममापि श्रमणं भगवन्तं महावीरं चरमतीर्थकर पूर्वतीर्थकरनिदिष्टम् ऋषभादितीर्थकरैर्भावितीर्थकरत्वेन प्ररूपितं ब्राह्मणकुण्डग्रामे नगरे वसत ऋषभदत्तस्य ब्राह्मणस्य भार्याया देवानन्दाया ब्राह्मण्याः कुक्षितः क्षत्रियकुण्डग्रामे नगरे वत्तमानस्य ज्ञातानां क्षत्रियाणां कुले समुत्पन्नस्य काश्यपगोत्रस्य । द्वारा गुरु के रूप में स्थापित भोग-नामक क्षत्रियों के वंशों में, राजन्यकुलों में-मित्र के रूप में स्थापित क्षत्रियों के कुलों में, इक्ष्वाकु-नामक क्षत्रियों के कुलों में, हरिवंशकुलों में पहले के वैरी देव-द्वारा लाये हुए हरिवष क्षेत्र के एक युगल के वंशज क्षत्रियों के कुलों में, ज्ञातकुलों में-उदार क्षत्रियों के कुलोंमें अथवा इसी प्रकार के विशुद्ध जाति (मातृपक्ष) और विशुद्ध कुल (पितृपक्ष) वाले किन्हीं कुलों में उनका संहरण कर दें-बदल दें। (शकेन्द्र फिर सोचते हैं-) इस कारण मेरे लिए भी यह उचित होगा कि मैं श्रमण भगवान् महावीर Dars को, जो चरम तीर्थकर हैं और भावी तीर्थकर के रूप में ऋषभादि पूर्ववर्ती तीर्थंकरों ने जिनका उल्लेख किया है उन्हें, ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर में निवास करने वाले ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि से क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में रहने वाले, ज्ञात क्षत्रियों के कुल में उत्पन्न काश्यप शक्रेन्द्रन कृत-गर्भ संहरणविचारः। તરીકે ઓળખાય છે. (૩) રાજન્યકુળ-મિત્ર તરીકે જે જે ક્ષત્રિયોને મુકરર કરવામાં આવ્યાં હતાં, તેઓના કુળ રાજન્યકુળે' કહેવાય છે. (૪) ઈફવાકુકુળ-આ નામથી પ્રસિદ્ધ થયેલ એક ક્ષત્રિયકુળ જે ભગવાન રાષભદેવનું કુળ હતું તે. (૫) હરિવંશકુળ-કઈ એક વેરભાવવાળા દેવ, હરિવર્ષ ક્ષેત્રમાં રહેલ એક યુગલને ભરતભૂમિ પર લઈ આવ્યો. આ યુગલ’ અહિં જ સ્થાઈ રહી ગયું. તેને વંશ હરિવંશકુળ ગણાય છે. (६) ज्ञात-S२ चित्तवाणा क्षत्रियानो हुन. (૭) વિશુદ્ધાતિકુળ-વિશુદ્ધ જાતિ એટલે માતૃપક્ષ, વિશુદ્ધકુળ એટલે પિતૃપક્ષ, એવા સંયુક્ત વિશુદ્ધિવાળા Tagो विशुद्धतिण' तरी माणभाय छ. For Private & Personal use Only ॥३७५॥ O nlainelibrary.org.
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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