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________________ श्रीकल्प ॥३४८॥ की माणप्रकारेण अवादीत् उक्तवान्-हे देवानुपिये ! त्वया उदाराः कल्याणाः शिवा धन्याः मङ्गल्याः सश्रीकाः हितकराः सुखकराः प्रीतिकराश्चतुर्दश स्वमा दृष्टाः। तेन-स्वप्नदर्शनेन अस्माकम् अर्थलाभः-अर्थस्य धनधान्यादेः लाभः प्राप्तिभविष्यति, भोगलाभ:-भोगा-मनोज्ञाः शब्दादिविषयास्तेषां लाभो भविष्यति, पुत्रलाभो भविष्यति, ततश्च सुखलाभो भविष्यति । त्वं खलु देवानुप्रिये ! नवसु मासेषु बहुपतिपूर्णेषु पूर्णतयाऽपगतेषु, तदुपरि च अर्धाष्टमेषु रात्रिन्दिवेषु-सासप्तसु अहोरात्रेषु व्यतिक्रान्तेषु सुकुमारपाणिपादम्-सुकुमारौ सुकोमलौ पाणी हस्तौ पादौ-चरणौ च यस्य तं-सुकोमलकरचरणयुक्तम्, अहीनप्रतिपूर्णपश्चेन्द्रियशरीरम्-अहीनानि अन्यूनानि स्वरूपतः, प्रतिपूर्णानि लक्षणतः पश्चापि इन्द्रियाणि श्रोत्रादीनि यस्मिंस्तत्तथाविधं शरीरं यस्य स तथा तम्-स्वस्वविषयग्रहणसमर्थपूर्णाकारश्रोत्रादीन्द्रियविशिष्टम्,लक्षण-व्यजन-गुणो-पपेतम्-लक्षणव्यञ्जनानि-तिलकालकादीनि,गुणाः सौशील्यादयः, यद्वा-पूर्वोक्तप्रकारैर्लक्षणय॑ज्यन्ते इति लक्षणव्यञ्जनाः,ते च ते गुणाः,अथवा पूर्वोक्तस्वरूपाणां लक्षणव्यञ्जनानां ये गुणास्तैः हे देवानुप्रिये ! तुमने उदार-उत्तम, कल्याणकारी, शिवस्वरूप, धन्य, मंगलमय, सश्रीक (सुन्दर या लक्ष्मीवर्द्धक), हितकारी, सुखकारी, प्रीतिकारी चौदह स्वप्न देखे हैं। उस स्वप्नदर्शन से अपनेको अर्थ अर्थात् धन-धान्य आदि का लाभ होगा, भोगों अर्थात् इन्द्रियों के शब्द आदि मनोज्ञ विषयों का लाभ होगा, पुत्र का लाभ होगा और फिर सुख का लाभ होगा। हे देवानुप्रिये ! तुम नौ महीने पूरे बीत जाने पर और उनके बाद साढ़े सात रात्रि बीतने पर पुत्र को जन्म दोगी । वह पुत्र अत्यन्त कोमल हाथों-पैरों वाला होगा। उसके शरीरमें पाँचों इन्द्रिया पूरी होगी और लक्षणों से युक्त होंगी, अर्थात् वह पुत्र अपने-अपने विषय को ग्रहण करनेमें समर्थ, पूर्ण आकारवाली श्रोत्र आदि इन्द्रियों से युक्त-शरीर होगा। लक्षणों से अर्थात् हथेलीमें बनी विद्या, धन, आयु आदि की शुभ रेखाओं से, व्यंजनों से अर्थात् तिल मसा आदि से और गुणों से अर्थात् सुशीलता आदि से युक्त होगा। अथवा पूर्वोक्त लक्षणों से जो व्यंजित (प्रकट) हों उन्हें लक्षणव्यंजन कहते हैं, से गुणों को 'लक्षणव्यंजनगुण' कहते हैं । अथवा पूर्वोक्त लक्षणों और व्यंजनों નંદાને કહ્યું. માતા જે સવા નવ માસ પૂરા થયે પુત્રને જન્મ આપે છે તે પુત્ર શારીરિક અને માનસિક તંદુરસ્તી લઈને અવતરે છે, એમ ગભર વિજ્ઞાન અને સ્ત્રી સંબંધીનું આરોગ્ય શાસ્ત્ર કહે છે. તે પ્રમાણે છે દેવાનુપ્રિય! તમને સવાંગસુન્દર પરિપૂર્ણ અને દરેક રીતે સુખ આપનાર કલ્યાણકારી પુત્રરત્ન થશે. એમ શાસ્ત્રાભ્યાસે જાણીને કહ્યું. " હથેળી પણ આદિમાં વિદ્યા, ધન, આયુ, વિગેરેની રેખાઓ તથા ચક–ગદા આદિના ચિહ્યો હોય તેને લક્ષણ ४. छ. तस-भसा विगेरेना विही शरीर पर डाय छेतेन ' on' छ. कृतचतुदेशमहास्वप्नफलवर्णनम् से ॥३४ S oilww.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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