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________________ मासः अष्टमः पक्षः आषाढशुद्धः, तस्य खलु आषाढशुद्धस्य षष्ठीपक्षे हस्तोत्तरायां नक्षत्रे योगोपगते महाविजय - सिद्धार्थ- पुष्पोत्तर - प्रवरपुण्डरीक - दिशास्वस्तिक - बर्द्धमानात् महाविमानाद् विंशतिं सागरोपमानि देवायुः पालfear आयुःक्षयेण भवक्षयेण स्थितिक्षयेण च्युतः, च्युत्वा तस्या देवानन्दायाः कुक्षौ सिंहार्भकभूतेन त्रिज्ञानोपगतेन श्रात्मना गर्भमवक्रान्तः । स खलु श्रमणो भगवान महावीर : 'च्योष्ये' इति जानाति, च्यवे' इति जानाति, 'च्यवमानो' न जानाति, सूक्ष्मः खलु स कालः प्रज्ञप्तः || सु०७ ॥ टीका- ' तेण कालेणं' इत्यादि । तस्मिन् काले तस्मिन् समये, अर्थात् - अस्याम् अवसर्पिण्याम् सुषमसुषमायां समायां व्यतिक्रान्तायाम् = व्यतीतायां, सुषमायां समायां व्यतिक्रान्तायां, सुषमदुष्षमायां हत्तर वर्ष तथा साढे आठ मास शेष रहने पर, ग्रीष्मऋतु का चौथा मास आठवा पक्ष जो अषाढ़शुद्ध है, उस अषादशुद्ध की षष्ठी तिथि में, हस्तोत्तरा नक्षत्र का योग आजाने पर, १ महाविजय, २ सिद्धार्थ, ३ पुष्पोत्तर, ४ प्रवरपुण्डरीक, ५ दिशास्वस्तिक और ६ वर्द्धमान, इन छह नामों वाले महाविमान से बीस सागरोपम की आयु पूर्ण करके, आयु के क्षय के कारण, भत्र के क्षय के कारण और स्थिति के क्षय कारण चवे, चत्र कर उस देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में, सिंह के शिशु के समान और तीन ज्ञानों से युक्त आत्मा से गर्भ में पधारे। वे श्रमण भगवान् 'चलूँगा' यह जानते थे, 'चवा' यह भी जानते थे, किन्तु 'चव रहा हूँ' यह नहीं जानते थे, क्योंकि चवन का वह काल सूक्ष्म कहा गया है | सू० ७ ॥ टीकाका अर्थ- 'तेणं कालेणं' इत्यादि । उस काल और उस समयमें अर्थात् इस अवसर्पिणी कालमें, पहले सुषमसुषमा आरे के व्यतीत हो जाने पर, दूसरे सुषमा आरे के व्यतीत हो जाने पर और तीसरे सुषमમાસ બાકી રહ્યાં ત્યારે ગ્રીષ્મૠતુના ચેાથા મહીને આઠમા પક્ષ જે આષાઢ શુદ્ધ છે તે અષાઢ યુદ્ધની છઠ્ઠી તિથિમાં, હસ્તાત્તરા નક્ષત્રના યેાગે, મહાવિજય ૧, સિદ્ધાથ ૨, પુષ્પાત્તર ૩. પ્રવરપુંડરીક ૪, દિશાસ્વસ્તિક પ, અને वृद्धमान ६ सेवा भेना ७ नाम छे, सेवा 'छ' નામવાલા વિમાનથી વીસ સાગરેાપમનું આયુષ્ય, ભવ અને સ્થિતિ પૂરી થયે ચવ્યાં. ત્યાંથી ચવીને, ત્રણ જ્ઞાન યુક્ત ભગવાન મહાવીરને આત્મા, દેવાના બ્રાહ્મણીની मुक्षिभां यधायें. श्रमण भगवान महावीर 'हु' थवीश - यवु छु" मे लगता हता. पशु 'थवी रह्यो छु' ते एयु नहि, शु} 'यवन' समयतो आज धो। सूक्ष्म होय छे (सू०७) टीना अर्थ- 'तेणं कालेणं' इत्यादि 'समय'नी Jain Education सघुता भने वर्तमानस्थिति जताये छे. वणते ने या ivate & Personal Use Only श्रीकल्पसूत्रे ||३४१॥ व्याम्या से छे छे, 'छल' हीघता मतावे छे त्यारे समय वर्तती होय ते भारानी पशु ने वसंतनी बात थती Nove कल्प मञ्जरी टीका महावीरस्य देवानन्दा गर्भ अव क्रमणम् ।। ३४१ ।। ww.jainelibrary.org.
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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