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श्रीकल्प
मञ्जरी
॥३३८||
छाया-तस्मिन् राजनि उरोभवाः प्रजा इव प्रजाः पालयति सुखं सुखेन दिनानि अतिवाइयति जनानानन्दयन् आश्विनमास आगच्छत् । कृषीवलाः बहलाः सस्यसम्पत्तीः दर्श दर्श पाहृष्यन् । व्यापारजीविनश्च सम्यग्व्यापारप्रवृत्या आनन्दसिन्धुच्छलत्तरलतरतरङ्गेषु न्यमज्जन् । सिद्धार्थराजोऽपि प्रजासार्थ कृतार्थ विलोक्य
कल्पचन्द्रं जलनिधिरिव अमोदत ॥ सू०५॥ टीका-"तस्सि रायम्मि" इत्यादि । तस्मिन्-सिद्धार्थाख्ये राजनि उरोभवाः औरसी मजा इव-निजसन्ताना
टीका इच प्रजाजनान् पालयतिरक्षति सुखं सुखेन दिनानि अतिवाहयति-व्यतिगमयति च सति, जनान् लोकान् आनन्द
मूल का अर्थ- 'तस्सि रायम्मि' इत्यादि। राजा सिद्धार्थ अपनी औरस सन्तान के समान मजा का पालन कर रहे थे और सुखपूर्वक दिन व्यतीत कर रहे थे कि आश्विन का महिना आ गया। किसान बहुत-सी सस्य-सम्पत्ति देख देख कर हर्षित हुए। व्यापारजीवी-नीतिपूर्वक व्यापार से आजीविका करने वाले, अच्छा व्यापार चलने से आनन्द के सागर की लहराती हुई अतिशय चंचल लहरों में मग्न थे। सिद्धार्थराज भी अपनी प्रजा के समूह को कृतार्थ देख कर प्रसन्न होते थे, जैसे चन्द्रमा को देख कर समुद्र प्रसन्न होता है ।। सू०५॥
पर आश्विन
मासाटीका का अर्थ-'तस्सि रायम्मि' इत्यादि । उर से उत्पन्न होनेवाली औरसी अर्थात् उदरजात प्रजा
गमनम् (संतान) कहलाती है। सिद्धार्थराजा मजा का अपनी उदरजात सन्तान की तरह पालन-रक्षण कर रहे थे। और सुख के साथ अपना समय व्यतीत कर रहे थे कि लोगों को आनन्दित करता हुआ आश्विन मास आ
भूलना भय-तस्सि रायम्मि' त्याहि. सिद्धार्थ २ अननसतान समतेनुपालन ४२तात. सुमना દિવસે વ્યતીત થતાં આ મહિને આવી પહોંચ્યો. આ માસમાં ફસલને સારી રીતે જોઈ ખેડુત વગ ઘણે હર્ષિત થયે. વ્યાપારી વર્ગ વ્યાપારની બહુલતાને લીધે ઘણે આનંદી અને ઉમંગી બન્યો હતે. સિદ્ધાર્થ રાજા પિતાની પ્રજાને પ્રસન્ન જોઈ પિતાની જાતને પુણ્યવાન ગણતા. જેમ ચંદ્રમાને જોઈ સમુદ્ર ઉલટી આવે છે તેમ પ્રજાને જોઈ
२० वोन्मत्त
रायम्मि" याह. GPथी अस्प
॥३३८॥
ताल तरी थी, त
नाम-"तस्सि रायम्मि"या. पत्र वान'मीर' हे.सतान मोरस' ४वाय छ. પ્રજા પણ રાજ્યનું એક અંગ છે. એમ માનવાવાલા સિદ્ધાર્થ રાજા, પ્રજાને સંતાન તરીકે ગણી, તેનું લાલનપાલન કરતા. જેમ સંતાનના ઉત્કર્ષ માટે પિતા બધું કરી છૂટે છે, તેમ સિદ્ધાર્થ રાજા પ્રજાના ઉત્થાન અર્થે કાંઈ પણ
४२वामा भारामता न. Jain Education international
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