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________________ कल्पमञ्जरी टीका लवणसमुद्रस्तस्य यज्जलं तस्य संस्पर्शः संबन्धोऽस्ति यस्य तस्य चुल्लहिमवतः लघु हिमवत्पर्वतस्य दक्षिणस्यां दिशि निशि-रात्रौ निशाकरः चन्द्र इव भरतमध्यम् अध्यासीनः भरतक्षेत्रस्य मध्यभागे स्थितः, धरणिमणिमण्डनायमानः= पृथिव्या मणिभूषणसदृशो विविधनदनदीमालाऽलङ्कृतवेषः-विविधानां नदनदीनां या माला तया अलङ्कृतो वेषो यस्य स तथाभूतः पूर्वाभिधाना पूर्वनामा देशः जनपदोऽस्ति । तत्र-तस्मिन् देशे गोष्ठानियोस्थानानि लब्धग्रामप्रतिष्ठानि लब्धा-माता ग्रामप्रतिष्ठा ग्रामयशो यैस्तानि-ग्रामसदृशानीत्याशयः, अभिरामाः शोभमाना ग्रामाः प्रतीयमाननगरविभ्रमाः-प्रतीयमानो नगरस्य विभ्रमः-शोभा यत्र ते तथाभूताः-नगरसदृशाः, नगराणि च खेचरनगरसोदराणि-विद्याधानगरतुल्यानि सन्ति, यत्र कृषीवलैः क्षेत्रकर्षकैः सकृत् एकवारम् उत्सानि क्षेत्रे विकीर्णानि अलुप्तानि-अनष्टानि धान्यानिशालिव्रीह्यादीनि परिपाके लूनान्यपि दूर्वा इव पुनः पुनः वारंवार वारं प्ररोहन्ति अङ्करकाण्डादिमण्डितानि भवन्ति, जनाः लोकाः सुषमाकालजाता: सुषमाकालोत्पन्ना इव निरामया निःक्लेशभयाः-क्लेशभयरहिताः, पुनः चिरायुषः दीर्घायुषः, पुनः सन्तोषजुषः सन्तोषसेविनः सन्तुष्टाः, स्वभावधर्मपुषः-स्वभावेन धर्मपुषःधर्मपुष्टिकराः-स्वभावेन धार्मिका इत्यर्थः, परिवसन्ति, उर्वी-भूमिः गुर्वी श्रेष्ठा उस चुल्ल-हिमवान् पर्वत से दक्षिण दिशा में पूर्व नामका देश है। वह रात्रि में चन्द्रमा के सदृश मुहावना, और भरत क्षेत्र के मध्य में स्थित है। वह ऐसा प्रतीत होता है मानो इस मही का मणिमय मंडन (आभूषण) हो। अनेक नदों एवं नदियों के समूह से वह अलंकृत है। उस पूर्व नामक जनपद में गोष्ठों अर्थात् गायों के बाडों ने ग्रामों की प्रतिष्ठा प्राप्त की है, अर्थात् वे गावों के समान थे। वहाँ के ग्रामों में नगर की सी शोभा प्रतीत होती थी। वहाँ के नगर विद्याधरों के नगर के समान थे। वहाँ के कृषक खेतों में एक बार शालि व्रीहि आदि बो देते थे जो नष्ट नहीं होते थे और पक जाने पर काट लिये जाने पर भी बकी भाँति बार बार ऊगते थे-फिर अंकुरित हो जाते थे, अर्थात् वहाँ की भूमि उर्वरा-अत्यन्त ही ऊपजाऊ थी। वहाँ के निवासी सुषमाकाल में उत्पन्न होनेवालों के समान रोगरहित, क्लेश एवं भय से रहित, दीर्घजीवी, सन्तोष का सेवन करनेवाले और स्वभाव से ही धर्म का सेवन करनेवाले थे। वहाँ की उत्तम भूमि सब प्रकार के धान्यों से समृद्ध थी। जलद अर्थात् આ ચુલ હિમવન પર્વતની દક્ષિણ દિશામાં ‘પૂર્વ' નામનો દેશ છે. આ દેશ ઠડે તેમજ ગરમ નહિ એવે સમધાત છે. ભરત ક્ષેત્રની મધ્યમાં તે આવી રહેલ છે. તેની શોભા અપરંપાર છે. આ દેશમાં અનેક નદ અને જ ॥३२२॥ થી Jain Education onal ainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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