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________________ श्रीकल्प मत्रे मञ्जरी ॥२७६॥ टीका महावीरस्य उपसर्गचतुष्क-दिव्यमानुष-तैरश्चा-त्मसंवेदनीयरूपोपसर्गचतुष्टये समुपस्थिते समागतेऽपि अस्खलितसंयमोद्यमः= संयमोद्यमस्खलनावर्जितः, पञ्चविषस्वाध्यायसक्तः-वाचना-प्रच्छना-परिवर्तनाऽनुप्रेक्षा-धर्मकथारूपो यः पञ्चविधः स्वाध्यायः, तत्र सक्तो लग्नः, षड़जीवनिकायरक्षणदक्षः-पटसंख्यका ये जीवनिकायाः पृथिव्यादिरूपास्तेषां रक्षणे कल्पदक्षः निपुणः,-सकलजीवरक्षणविधिज्ञ इत्यर्थः, सप्तभयस्थानमुक्तः सप्तसंख्यकानि इहलोकादीनि यानि भयस्थानानि तेभ्यो मुक्त:-रहितः, अष्टमदस्थानविकल: जातिकुलमदादिरूपाष्टमदस्थानरहितः, नवविधब्रह्मचर्यगुप्तिगुप्तः= विविक्तशयनासनसेवनादिरूपनवविधब्रह्मचर्यगुप्तिगुप्तः, दशविधश्रमणधर्मधरः क्षान्त्यादिदशविधसाधुधर्मधारकः, एकादशादेवता, मनुष्य, तिर्यच कृत, तथा अपने आप से वेदने योग्य, इन चार प्रकार के उपसर्गों के उपस्थित होने पर भी संयमसंबंधी उद्योग से च्युत नहीं होते थे। वाचना, प्रच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा रूप पाँच प्रकार के स्वाध्याय में संलग्न रहते थे। पृथिवीकाय आदि पड़ जीवनिकायों की रक्षा करने में दक्ष थे, अर्थात् जीव मात्र की रक्षा करने की विधि के ज्ञाता थे। इहलोकभय, परलोकभय आदि सात भयों के स्थानों से मुक्त थे। जातिमद, कुलमद आदि आठ मद-स्थानों से रहित थे। क्षमा आदि दस यतिधर्मों के धारक थे। आचारांग आदि ग्यारह अंगों के ज्ञाता थे। अनशन आदि बारह प्रकार के तप से नन्दनामकः वयन, ५७, पाय' या ४२७, पांय 6५२ वियार ४२वो, मन थाम्यानु २८५ ४२. भाविंशतितमो 'स्वाध्याय' ना पांय ४२ शासीत छ, ते मे समसभा भूतi di. ७ये याना वानी या पाणी भवः। ઉદ્યમવંત રહેતાં. રેગ આદિ અવસ્થામાં પણ સાવધ ઔષધ-ભેષજ નહીં કરતાં ઈહલેકભય, પરલોકભય, આદાનભય, અકસ્માતભય, આજીવિકાભય, મરણુભય, અપયશભય, આદિ સાતે પ્રકારના ભયને દૂર કરતાં આઠ મદને તેમણે ચકચુર કર્યા હતાં. નવ પ્રકારની વાડોનું અવલંબન લઈ “બ્રહ્મચર્ય વ્રત' ને શુદ્ધપણે પાળી રહ્યાં હતાં. प्रझयानी नवा मा प्रभा छ (१) श्री-पशु-पुस २तिभा २७, (२) स्त्रीनी या पात ४२वी नहि, श्रीना भासने मेस न. (6) श्रीनु ३५ निरम नलि. (५) श्री २४ती होय त्यो बीतने मांतरे २४७ नलि. (६) पूनी સંભારવી નહિ. (૭) પ્રતિદિન કારણવગર ઘી-દૂધ, મશાલાવાળા આહાર-પાણી લેવા નહિ. (૮) અતિ આહાર ॥२७६॥ ४२३॥ नहि. (E) शरी२नो शाखा ४२वी नलि. मा 'प्रायः' इतने सारी शेते निभाना साधने छ. क्षमा, निalilue', ४५८२डित, भानरलितप, धुभूत-द्रव्यमा २२९, सत्य, संयम, मार Asal Rना त५ ४२वा, या भने ब्रायन, 6 यति मी . तेभा 'न' मार स्थित Gai.. JEGw.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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