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________________ श्रीकल्प मूत्रे ॥१७४॥ विनाशको यो वचनामृतरसस्तं श्रवणपुटैः श्रोत्ररूपपुटकः, आपीय=नितरां पीत्वा संजातसंवेगनिर्वेदः संसारारुचिमोक्षाभिलापसम्पन्नः, विवेकाऽऽलोकाऽऽलोकितमोक्षपथः विवेकप्रकाशेन दृष्टमुक्तिमार्गः, असारसंसारपरिभ्रमणनिवर्तनादिदक्षाम्-असारसंसारे यत्परिभ्रमणं, ततो निवर्त्तने-निवारणे. आदिपदेन-सिद्धिगतिपापणे च दक्षां निपुणां दीक्षां सर्वविरतिलक्षणां प्रव्रज्यां गृहीत्वा संयममार्गे विहरति ॥ सू०१०॥ मूलम्-एगया जिममग्गे विहरमाणो सो अमुहकम्मोदएण सीउण्हाइपरीसहेहि . पराजिओ संजमे सीयमाणो संजमं चइऊण तिदंडी तावसो जाओ। इमो य पाणितलगयं चिंतामणिरयणं परिचज कायं गहीअ, मुत्ताहारमवहाय गुंजाहारं धरीअ, सुरतरुमवहाय करीरं सेवीअ, हस्थि विक्कीय गद्दभ किणीअ, नंदणवणमवहेलिय एरंडवणमासाई। किं बहुणा ? इमो भवन्भमणोवायं अन्नेसी । सच्चं; अण्णायवत्थुमाहप्पो जणो करयलगयमुत्तमं वत्थु तणंविव तिरक्करेइ। एवं सो चारित्तरयणमवहाय तिदंडितं गही। तहवि सो हिययट्ठियजिणोवइट्टधम्मसंकारो चारित्तपासायखंतिमुत्तिप्पभिइसोवाणाओ खलिओवि उसभदेवगुणग्गामगानरस्सिमवलंबमाणो नो सव्वहा मिच्छत्तभूयलपएसे पडिओ, जओ उच्छलंतदयामयधारो सो भवियजणे जिणोवइट चरित्तधम्म मुहं मुहुँ उवएसिय पहुसमीवे पयजटुं पेसेइ । सच्चं, जणाणं हिययओ पुव्वसंकारी किभियरागोव्य पाएण न नियट्टइ ॥ सू०११॥ महावीरस्य मरीचिनामकः तृतीयो भवः। मदिरा को विनष्ट करने वाला है उसका अपने श्रोत्रपुटों-कानों से पान किया। इससे उसके चित्त में संवेग अर्थात् संसार के प्रति अरुचि और निर्वेद एवं मुक्ति की अभिलाषा उत्पन्न हो गई। उसे अपने विवेक के आलोक (प्रकाश) में मोक्षमार्ग दिखाई देने लगा। अत एव असार संसार के परिभ्रमण का निवारण करनेमें और 'आदि' पद से मोक्ष प्राप्त कराने में दक्ष सर्वविरतिरूप दीक्षा ग्रहण करके वह संयममार्गमें विचरने लगा ।। मू०१०॥ ॥१७४॥ સમયમાં જરૂર પડી જાય છે. તે પ્રમાણે નયસારને જીવ દેવલોકના સુખે ભેગવી, ઋષભદેવ ભગવાનના પુત્ર ભરત મહારાજાને ત્યાં પુત્રપણે આ. ભગવાનની અમેઘ વાણીએ તેમના જીવનમાં પલટો આ ને સંસારના ક્ષણિક સુખેને ત્યાગ કરી શાશ્વત સુખના ભાગને અપનાવ્યું. ભગવાન આગળ દીક્ષા પર્યાય ધારણ કરી પૂર્ણ સંયમી Sarsona मने समिति थयो. (२०१०) For Private & Personal Use Only ADS S onw.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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