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________________ PRESS श्रीकल्प कल्पमञ्जरी ॥१६५|| टीका संसारे घडियापणालविगलव्वारोवमे जीविए, को जाणाइ पुणो तए सह ममं होजा न वा संगमो ॥१॥ इति । ___ तओ जाव मुणिवरो लोयणपहपहिओ आसी ताव नयसारो अणिमेसदिट्ठीए तं विलोगमाणो तत्थेव ठिओ । मुणिणाहे दिहिपहाईए तओ नियट्टिय, नयसारो विष्णायसंसारासारो धणजोव्वणजीवणाणि अंजलिजलाणि विव अस्थिराणि चंचलागि पडिक्खगं खोयमाणाणि ओहारिय, सयलमुहनिहाणं सम्मत्तप्पहाणं मुणिनाहवयणसंदिटं विस्टुिं जिणोवइट्ट धम्मं हिययम्मि धारेमाणो सहयरे अवि पडिबोहिय सयं ठाणं पडिगमीअ॥मू०८॥ छाया-ततः खलु भक्तिभावसमाकृष्टो मुनिवरिष्ठ उत्कृष्टभावसारस्य नयसारस्यावासमनुपविष्टः । ततः खलु प्रसन्नहृदयः सविनयो नयसार एवमवादीत-भदन्त ! यथा-सुतरुः पुष्पं विनैव फलेत्, मरौ अनभ्रा जलवृष्टिः, दीनसदने सुवर्णदृष्टिश्च भवेत्, तथाऽद्य ममाङ्गणे भगवतश्चरणकमलरज-पातो जातः। भगवतो दर्शनेनाहं पीयूषपानेनेव प्रीणितोऽस्मि । एवं व्यक्तभक्तिधारो नयसारो मुनिवरं स्तुत्वा मासुकैषणीयैर्विपुलैरशनपानखादिमस्वादिमैश्चतुर्विधराहारैः प्रतिलम्भयति । ततः खलु स नयसारः वनाद् नगरं गन्तुमनसं तं मुनिमनुगम्य मार्ग दर्शयित्वाऽचन्दत । ततः खलु स मुनिदर्शनामृतपिपासः प्राप्तसम्यक्त्वसारो नयसार एवमवादीत-हे मुनिनाथ ! मूल का अर्थ-'तए णं' इत्यादि । तब भक्तिभाव से खिंचे हुए वह मुनिवर, उत्कृष्ट भक्तिभाव से विभूषित नयसार के निवासस्थान में प्रविष्ट हुए । तब प्रसन्नचित्त और विनयसम्पन्न नयसार ने कहा-प्रभो ! जैसे कल्पवृक्ष फूल आये विना अकस्मात् ही फल जाय, मरुभूमि में मेघों के विनाही वर्षा हो जाय और दरिद्र की झोपड़ी में सोना बरस पड़े उसी प्रकार आज मेरे आंगन में आपके चरण-कमलों की रज गिरी है। आपके दर्शन से मैं इतना प्रसन्न हूँ, जैसे अमृत पीया हो! इस प्रकार प्रकट भक्ति को धारण करने वाले नयसारने मुनिवर की स्तुति करके उन्हे मासुक एवं एषणीय विपुल अशन, पान, खाद्य तथा स्वाध रूप चार प्रकार के आहार से प्रतिलाभित किया। तत्पश्चात् वन से नगर की ओर जाने की इच्छा से आगे चलने वाले मुनि के पीछे-पीछे चलते हुए मुनिदर्शनअभिलाषी तथा सम्यत्तव-सार को प्राप्त करनेवाले नयसार ने कहा-हे मुनिनाथ ! होना महावीरस्य नयसारनामकः प्रथमो भवः। बार म ॥१६५॥ ए Jain Education miteinational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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