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कल्प
ओकल्प
चन्द्रः चन्द्रिकाम् इव मुखे मुखोपरि धरन्तं, सदोरकमुखवत्रिकायाचन्द्रिकासादृश्यं धवलत्वेन बोध्यम्; कर्मसमूहं रिक्तं क्षीणं कुर्वन्तं, शारदेन्दुप्रसन्नवदनं-शरदि भवः शारदः, स चासाविन्दुश्चन्द्रः स इव प्रसन्न निर्मलं वदन-मुख यस्य तम्, धवलवसन-शुक्लबलवन्तम्, ज्ञाननिधान ज्ञानवन्तम् अकिञ्चनं निष्परिग्रहमिति ।मु०५।।
मूलम्-तएणं सो उदारो नयसारो भूनत्थमस्थयाइपंचंगो गायबंदणविहिपसंगो गुणगणधरं तं मुणिवरं उयारभावेण वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता, तदंसगाणंदतुंदिलो आगमेसिमदंकुरकंदिलो सयं जम्मजीवियं सहलं मण्णमाणो परमभत्तिभावुल्लसियमणसा तं पज्जुवासमाणो, तत्थ अदूरसामंते समुवविट्ठो |मू०६॥
छाया-ततः खलु स उदारो नयसारो भून्यस्तमस्तकादिपञ्चाङ्गो ज्ञातवन्दनविधिप्रसङ्गो गुणगणधरं तं
मञ्जरी
मंत्र
टीका
कल्याण है उसको मुचित करनेवाली डोरासहित मुखवत्रिका को मुख पर इस प्रकार धारण किये हुए थे; जैसे चन्द्रमा चांदनी को धारण करता है। चांदनी श्वेत होती है और मुखवत्रिका भी श्वेत होती है, अत एव दोनों में समानता है। वे मुनि कर्मों के समूह को क्षीण करने में तत्पर थे। उनका मुख शरद् ऋतु के चन्द्रमा के समान निर्मल था। श्वेत वस्त्र धारण किये हुए थे। ज्ञान के निधान थे और परिग्रहरहित थे ॥मू०५॥
मूल का अर्थ-'तएणं सो' इत्यादि । मुनि महाराज को देखने के पश्चात्, उदार वन्दना की विधि को जानने वाले तथा जिसने अपने पांचों अंगों को पृथ्वी पर टिका दिया है एसे नयसार ने गुणसमूह के धारण करनेवाले उन मुनिवर को उदार भाव से वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना-नमस्कार करके
नयसारकथा
દેરા સાથેની મુખવસ્ત્રિકાને મુખ પર એ પ્રકારે ધારણ કરી રહ્યા હતા કે જેમ ચંદ્રમા ચાંદનીને ધારણ કરે છે. ચાંદની શ્વેત અને મુખવસ્ત્રિકા પણ વેત હોય છે, તેથી બેઉમાં સમાનતા છે. એ મુનિ કર્મ સમૂહને ક્ષીણ કરવામાં તત્પર હતા. એમનું મુખ શરદના ચંદ્ર પિઠે નિર્મળ હતું. વેત વસ્ત્ર પહેર્યા હતાં. જ્ઞાનના નિધાન અને પરિગ્રહ 81 Gal.
भूसनी मथ-'तपणं सो' त्यादि. भुनिराजन नयां पछी हार पहनानी विधिना ना२, सने
પિતાના પાંચે આંગને પૃથ્વી ઉપર ટકાવી દીધાં છે એવા નયસારે ગુણસમૂહના ધારક તે મુનિવરને ઉદાર ભાવથી Jain Education Erainik नभ४२ या वहन नभ२४॥२ ४रीन लावण्यमा थना२ स्याना मा तनयसा२, भुनिशिनना भान थी
॥१५५॥
"उदयाचाdavw.jainelibrary.org