________________
-
श्रीकल्प
मत्रे ॥१२५॥
दुःखहारकः शिवमुखकारक इत्यादिरूपेण प्रशंसा कृस्वा, आराध्य आराधनां कृत्वा, इस्थम् आशया-जिनाझया - अनुपाल्य क्रमेण पालयित्वा तेनैव भवग्रहणेन जन्मना सिध्यति सकलकार्यकारितया सिद्धो भवति, बुध्यते-विमल
केवलालोकेन जानाति, मुच्यते सर्वकर्मभ्यो मुक्तो भवति, परिनिर्वाति-समस्तकर्मकृतविकाररहितत्वेन स्वस्थो भवति, सर्वदुःखानां शारीरिकमानसिकसमस्तक्लेशानाम् अन्तं नाशं करोति-अव्यायाधमुखभाग् भवतीत्यर्थः । ततश्च शाश्वतः सावकालिकः सिद्धो भवति । अस्त्येको द्वितीयेन भवग्रहणेन, अस्त्येकस्तृतीयेन भवग्रहणेन शाश्वतः
कल्पमञ्जरी रोका
कथित है, भव-दुःखों को हरण करने वाला है, मोक्ष के सुख का कर्ता है' इत्यादिरूप से इसकी प्रशंसा करके, आराधना करके, जिनदेव की आज्ञा से क्रमशः पालन करके कितनेक साधु या साध्वी 'सिध्यति' इसी भव में सिद्ध-कृतकृत्य हो जाते हैं, 'बुध्यते' निर्मल केवल ज्ञान से समस्त पदार्थसार्थ को जानने लगते हैं, 'मुच्यते' सब कर्मों से मुक्त हो जाते हैं, 'परिनिर्वाति' कर्मजनित समस्त विकारों से रहित होने के कारण आत्मस्वरूप में स्थित हो जाते हैं, 'सर्वदुःखानामन्तं करोति'-सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक क्लेशों का अन्त करते हैं, अर्थात् अध्यावाधमुख के भागी होते हैं और शाश्वत सिद्ध होते हैं। कितनेक
મક્ષના સુખને કર્તા છે” ઈત્યાદિ રૂપે એની પ્રશંસા કરીને, આરાધના કરીને, જિનદેવની આજ્ઞાનુસાર કામ કરીને पासन शने 28 साधु या साध्वी 'सिध्यति'-मा समi सिद्ध-कृतकृत्य 40 गय छ, 'बुध्यते' नि १० सानयी समस्त पहा ने anganाणे छ, 'मुच्यते'-यां थी भुत थ य छ, 'परिनिर्वाति' भनित सभरत विरोधी सहित पाने २णे आत्म२५३५ स्थित / गय छ, 'सर्वदुःखानामन्तं करोति' સંપૂર્ણ શારીરિક અને માનસિક કલેશને અંત કરે છે, અર્થાત્ અવ્યાબાધ સુખના ભાગી થાય છે અને શાશ્વત
॥१२५॥
Jain Education
tonal
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org