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श्रीकल्प
म नित्यदिका नित्यस्यन्दना असेतुका, तत्र सर्वतः समन्ताद् योजनमर्यादायां भिक्षाचर्याय गन्तुं वा प्रतिनिवतितुं वा ॥ मू०२८॥
टीका--'नो कप्पइ' इत्यादि । ग्रामे वा यावत् सन्निवेशे वा वर्षावासं निवसतां निग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा, यदि तत्र ग्रामादौ नित्योदका-नित्यमुदकं यस्यां सा तथा-सजला, अत एव-नित्यस्यन्दना नित्यमबाहयुक्ता सती असेतुका सेतुवजिता भवेत, तत्र ग्रामादौ सर्वतः समन्ताद योजनमर्यादायां भिक्षाचर्यायैगन्तुं वा भिक्षामादाय प्रतिनिवर्तितुं वा नो कल्पते । सेत्वादियुक्ता यदि भवेत, तदा तु कल्पते एवेति ॥मू०२८॥
भिक्षाचर्यानिषेधप्रस्तावात् सम्पत्यन्यमपि तथाविधं निषेधमाह--
कल्पमञ्जरी टीका
॥१९॥
सदा बहती रहती हो और जिस पर पुल न हो, तो वहाँ साधुओं और साध्वियों को एक योजन तक भिक्षा के लिए जाना और आना नहीं कल्पता ।।मू०२८॥
टीका का अर्थ-ग्राम यावत सन्निवेश में वर्षावास में स्थित श्रमणों और श्रमणियों को, उस ग्राम आदि में यदि जल से परिपूर्ण, सदा बहने वाली और विना पुल की नदी हो तो भिक्षाचर्या के लिए एक योजन तक गमन-आगमन करना नहीं कल्पता। यदि पुल हो या नदी में पानी न रहता हो तो जाना कल्पता ही है ॥मू०२८॥
भिक्षाचर्या में निषेध का प्रकरण होने से फिर भी निषेध कहते हैं- 'नो कप्पइ' इत्यादि।
રહેતી હોય અને જેની ઉપર પુલ ન હોય, તે ત્યાં સાધુ-સાધ્વીઓને એક યોજન સુધી ભિક્ષા માટે જવું અને भाव पतु नथी. (२०२८)
ટકાનો અર્થ-ગ્રામ યાવત્ સંનિવેશમાં વર્ષાવાસમાં રહેલા શ્રમ અને શ્રમણીઓને, એ ગ્રામ આદિમાં જે જળભરી અને સદા વહેતી તથા પુલ વિનાની નદી હોય તો ભિક્ષાચર્યા માટે એક જન સુધી ગમનાગમન કરવું ક૯૫તું નથી. જે પુલ હોય યા નદીમાં પાણી ન રહેતું હોય તે જવું કહ્યું છે. (સૂ૦૨૮).
मिक्षायामा निषेध ४२५ पाथी श्री ५ निषेध ४९ छ-'नो कप्पई' त्यादि.
॥१९॥
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