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________________ श्रीकल्पसूत्रे ॥९८॥ MEEKSH 貓 Jain Education Inter त्तरयोरूर्ध्वाधोदिशोश्चापि योजनमर्यादा, तस्यां भिक्षाचर्यायै गन्तुं भिक्षां गृहीत्वा प्रतिनिवर्तितुं वा कल्पते । अयं भात्रः- ग्रामादिद्वारतः पूर्वस्यां दिशि क्रोशद्वयं पश्चिमायां च क्रोशद्वयमिति चतुष्क्रोशावधि क्षेत्रं साधुभिः साध्वीभि भिक्षार्थ गन्तव्यम् । एवं दक्षिणोत्तरविषये ऊर्ध्वाधोविषयेऽपि विज्ञेयमिति ॥ मृ०२९ ॥ इत्थं भिक्षाविषयमवग्रहमभिधाय सम्पति तन्निषेधमाह - मूलम् - नो कप्पर निम्गंथाणं वा निमगंथीणं वा गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा, जइ तत्थ नई निचोयगा निच्चसंदणा असेउगा, तत्थ सन्चओ समता जोयणमेराए भिक्खायरियाए गमित्तए वा पडिनियत्तए वा ॥ म्रु०२८ ॥ छाया --नो कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा ग्रामे वा यावत् सन्निवेशे वा यदि तत्र नदी सी एक योजन की मर्यादा समझनी चाहिए । इसी प्रकार दक्षिण-उत्तर में तथा ऊपर-नीचे भी एक एक योजन समझना चाहिए। इसी मर्यादा में भिक्षा के लिए जाना और भिक्षा लेकर पीछा आना कल्पता है । अभिप्राय यह है कि ग्राम आदि के दरवाजे से पूर्व दिशा में दो कोस और पश्चिम दिशा में दो कोस, इस तरह चार कोस की दूरी तक साधुओं और साध्वियों को जाना कल्पता है। यही विधान दक्षिण उत्तर तथा ऊर्ध्व-अधोदिशा के विषय में भी जानना चाहिए ||म्०२७|| इस प्रकार भिक्षा-विषयक अवग्रह बतलाकर अब उसके विषय में निषेध बतलाते हैं -- 'नो कप्पड़' इत्यादि । मूल का अर्थ - ग्राम यावत् सन्निवेश में यदि नदी हो, जिसमें सदा जल रहता हो, जो એ પ્રમાણે દક્ષિણ-ઉત્તરમાં તથા ઉપર નીચે પણ એકએક ચેાજન સમજવું. એ મર્યાદામાં ભિક્ષાને માટે જવું અને ભિક્ષા લઇને પાછા આવવું ક૨ે છે. તાત્પર્ય એ છે કે ગ્રામ આદિના દરવાજાથી પૂર્વમાં બે ગાઉ અને પશ્ચિમમાં એ ગાઉ, એમ ચાર ગાઉના અંતર સુધી સાધુ-સાધ્વીને જવું ક૨ે છે, એ વિધાન દક્ષિણ-ઉત્તર તથા अ-धो हिशाना विषयभां पशु लधुवु (सू०२७) मे प्रभा लिक्षाविषयक सवग्रह तावीने हवे मे विषयमा निषेध बताये छे:- नो इत्यादि. મૂળના અથ-ગ્રામ યાવત્ સ'નિવેશમાં તે નદી હાય, જેમાં હમેશાં જળ રહેતુ હોય, ને હંમેશાં વહેતી कल्प मञ्जरी टीका ॥९८॥ jainelibrary.org.
SR No.600023
Book TitleKalpasutram Part_1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherSthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti Rajkot
Publication Year1958
Total Pages594
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size21 MB
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