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श्रीकल्प
कल्प
मञ्जरी
सूत्रे ॥९॥
टीका
सरकारका लाटाका कढण इत्यादि । व्याख्या सष्टा । मरम्आचार्यादीनामाः पूर्व षष्ठे सूत्रे गताः ॥०२०॥
अनन्तरोक्तशुक्लपञ्चमी तिथिरेव पर्युषणादिवसः। अतस्तद्भिन्नायां चतुर्थी द्वितीयपञ्चम्यां वा न कदाचिदपि पर्युषणा कर्त्तव्येति प्रदर्शयितुमाह
मूलम्-नो कप्पइ निम्गंथाणं वा निम्गंधीणं वा अपज्जोसवणाए पजोसवित्तए ।मु०२१ ।। छाया-नो कल्पते निग्रन्थानां वा निग्रन्थीनां वा अपर्युषणायां परिवस्तुम् ॥मू०२१॥
टीका-'नो कप्पइ' इत्यादि । व्याख्या स्पष्टा । नवरं-परिवस्तुम् कर्तुमिति ॥ मू०२१॥ के वीस दिन सहित एक मास व्यतीत होने पर पयुषण करना कल्पता है ।मू०२०॥
__टीका का अर्थ-मूत्र की व्याख्या स्पष्ट ही है। आचार्य आदि का अर्थ पहले छठे मूत्रमें बतलाया जा चुका है ।। मू०२०॥
पूर्वोक्त शुक्ला पंचमी तिथि ही पर्युषणा का वास्तविक दिन है। अतएव उस पंचमी से भिन्न चतुर्थी या दो पंचमिया हो तो दूसरी पंचमी के दिन कदापि पर्युषण नहीं करना चाहिए, यह प्रदर्शित करने के लिए कहते हैं-'नो कप्पइ' इत्यादि ।
मूल का अर्थ-साधुओं और साध्वियों को अपर्युषणामें, पयुषणा दिवस को टालकर पयुषण नहीं करना चाहिये ॥ मू०२१॥
टीका का अर्थ-व्याख्या स्पष्ट है। 'पज्जोसवित्तए' का अर्थ है 'करना' ।।मू०२१॥ પરંપરાથી આદરામાં આવે છે. આ હેતુથી આવું કહેવામાં આવ્યું છે કે સર્વ સાધુ-સાધ્વીઓએ ચેમાસાના વીસ દિવસ સહિત એકમાસ પૂર્ણ થયે પર્યુષણ કરવા જોઈએ (સૂ૦૨૦)
પૂર્વોક્ત શુકલ પક્ષના પાંચમ' ના દિવસે જ “ સંવત્સરી' કરવી, બીજા કોઈ દિવસે-ચતુથી અથવા કદાચ બે પંચમી આવે તે પહેલી પાંચમને મુકીને બીજા પાંચમે કદાપિ સંવત્સરી નહિ કરવી જોઇએ. આ વાત प्रहशित ४२१॥ भाटे ४ छ–'नो कप्पा' याह.
મૂળને અર્થ-સાધુ-સાધ્વીઓએ અપર્યુષણમાં પર્યુષણના દિવસેને ટાળીને પર્યુષણ ન કરવી જોઈએ. (સૂ૦૨૧) सानो मथ-०याध्या २५८ छ. 'पज्जोसवित्तप' ने मथ' '४२' थाय छे. (२०२१)
॥९१॥
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