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________________ सनत्कुमार | चरित्रं ॥२२७॥ Jain Education International अर्थ :- सरल शीलवतनी मीठाशवाळा, तथा धर्मकायम अग्रेसर एवा आ सनत्कुमारना राजअमल दर्म्यान समस्त पृथ्वीतल हमेशां धर्ममयज थह गये. ६१ ॥ शृङ्गारसुन्दरीजानिं शीलादुन्मीलितोदयम् । भूचरैः खेचरैः सेव्यं पश्यन्कोऽभून्न शीलभाक् ॥ ६२॥ अन्वयः -- शीलात् उन्मीलित उदयं, भूचरैः खेचरैः सेव्यं शृंगारसुंदरी जानि पश्यन् कः शीलभाक् न अभूत्. ॥६२॥ अर्थः- शीलना प्रभावथी थयेल छे उदय जेनो एवा, तथा मनुष्यो अने विद्याधरोने सेववालायक, एवा शृंगारसुंदरीना स्वामी सनत्कुमारने जोड़ने कयो माणस शीलव्रतने भजनारो न थयो ? ।। ६२ ॥ इत्थं पृथ्वीश्रियं भुक्त्वा जन्मान्तेऽनशनोत्तमः । सभार्यः स ययो राजा विमानेऽनुत्तरेऽजिते ॥ ६३ ॥ अन्वयः -- इत्थं पृथ्वीश्रियं भुक्त्वा जन्मांते अनशन उत्तमः सः राजा सभार्यः अजिते अनुत्तरे विमाने ययौ ॥ ६३ ॥ अर्थ :- एवीरीते पृथ्वीनी समृद्विने भोगवीने जीवीतने अंते अनशनथी उत्तम थयेलो ते राजा शृंगारसुंदरी सहित अनुपम अनुत्तर विमानमा गयो. ॥ ६३ ॥ शीलमुले गुणस्तम्बे राज्यपत्रे यशःसुमे । धर्मकल्पद्रुमे सैष लब्धा शिवफलं क्रमात् ॥ ६४ ॥ अन्वयः - शील मूले, गुण स्तंवे राज्य पत्रे, यशः सुमे, धर्म कल्पद्रुमे सः एषः क्रमात् शिव फलं लब्धा. ।। ६४ । For Private & Personal Use Only শ सान्वय भाषान्तर ॥ २२७॥ www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
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