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प्रद्युम्न
चला गया ।६९-७१॥
घरमें आके द्विजपुत्रोंने अपने मातापिताके चरणोंमें प्रणाम किया और कहा “पिताजी ! अपने चरित्र । शहरके निकट वनमें मूर्ख दिगम्बर आये हैं, सो उनसे वाद विवाद करनेके लिये हम जाते हैं। कारण यदि वे जिनधर्मके प्रकाशक वेद शास्त्रके शत्रु दो तीन दिन भी वनमें रहेंगे तो अनेक मनुष्य वेद शास्त्र से विमुख हो जायगे। क्योंकि वे जैनशास्त्रको अच्छी तरह जानते हैं इससे वेद शास्त्रोंकी बातोंको मूलसे उखाड़ देंगे। इसलिए हमारा विचार है कि हम वेद शास्त्रके बलसे वाद विवादमें हरा देखें। फिर वे वनमें क्षत्रमाण भी नहीं ठहरेंगे" ।७२-७५। तब माता पिताने कहा “पुत्रों तुम वनमें मत जागो कारण दिगम्बर साधु बड़े चतुर होते हैं नाना देशोंमें विहार करते रहनेसे वे बड़े अनुभवी हो जाते हैं, सर्व शास्त्रोंके पारगामी होनेसे वे शास्त्रार्थमें निपुण होते हैं, और प्रतिदिन पठन पाठनमें लगे रहते हैं । इससे जगतमें किसकी सामर्थ्य है, जो ऐसे दिगम्बर साधुत्रोंसे विवाद करें" ? ७६. ७७। गर्वसे भरे हुए पुत्रोंने माता पिताके उक्त वचनोंपर ध्यान नहीं दिया। वे मूर्खतासे घमण्डमें चकचूर होकर बोल उठे-“हम दोनोंको विद्या वा बादमें जीतनेवाला पृथ्वीपर है ही कौन ? आप ऐसे दीन वचन क्यों कहते हो ? देखो ! हम अभी वनमें जाते हैं और उन्हें वादमें जीत लौटकर आते हैं" ऐसा कहकर वे दोनों द्विजपुत्र माता पिताके समझाने और मना करनेपर भी घरसे बाहर निकलकर वनकी ओर चले ही गये ।७८-८०॥
जो श्रीनन्दिवद्धन मुनिराज वनमें विराजे हुए थे और जिन्हें शिष्यगण सुन्दर श्रृंखलाके समान घेरे बैठे हुए थे, उनको वादमें जीतने की अभिलाषासे अग्निभूति वायुभूति द्विजपुत्र वनकी तरफ जा रहे थे। रास्तमें वे परस्पर बड़े अभिमानसे बातचीत करते जाते थे (कि हम मुनियोंसे ऐसा कड़ा प्रश्न करेंगे, देखें कैसा उत्तर देते हैं)।८१-८२। रास्तेमें एक पहाड़ी पड़ती थी, जिसकी तलैटीमें एक
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