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________________ प्रद्यम्न सब लोग बढ़िया २ वस्त्राभूषण पहनकर बनकी तरफ कहां जा रहे हैं ? तब उस श्रावकोत्तमने उत्तर दिया, क्या तुम अभी आकाशसे पृथ्वीपर पड़े हो, यह नहीं जानते कि सर्व शास्त्र के पारगामी अनेक ६१ ऋद्धि धारक मनुष्य वा देवोंके पूजने योग्य मुनि महाराज वनमें पधारे हैं और उन्हीं की वंदनाको सर्व सज्जन जा रहे हैं श्रावकके वचनों को सुनकर द्विजपुत्र बोल उठे - अरे मूर्ख शिरोमणि ! तू क्या निंदा के योग्य वाक्य मुहसे निकालता है। दिगंबर तो जगतनिंद्य होते हैं, उनका शरीर मलीन होता है, वे मूर्ख होते हैं, वेद शास्त्रको बिलकुल नहीं जानते हैं, उनको साधु कैसे कह सकते हैं ? जो विप्रोंके उत्तम कुलमें उत्पन्न हुआ हो, वेदोंका पाठी हो, बुद्धिवान हो, तरणतारण समर्थ हो, वही साधु कहा जा सकता है ।५४-६१ । हे शठ ! इसलिये पृथ्वीतलपर हम ही पूज्य हैं, मूर्ख मनुष्य दिगम्बरोंकी वंदनाको वृथा ही क्यों जाते हैं । ६२| तब श्रावकने जिसका हृदय मुनिभक्ति से भीजा हुआ था, उत्तर दिया- अरे दुष्टों ! तुम धर्म कर्मकी क्रियासे रहित हो, गृहस्थदशामें पड़े हुए हो, स्त्रियों के मोह में फंसे हुए हो, निंदा के पात्र हो भला तुम कैसे साधु कहलाये जा सकते हो ? १६३६४ | जिनकी चरणकमल जसे भव्यजीवोंने अपनी देह पवित्र की है तथा जो निःसंदेह स्वर्गादिकके सुख भोगकर परम्परा से मोक्षको प्राप्त होते हैं वे ही सच्चे साधु जगतपूज्य हैं । सर्व प्राणियों के हितके कर्ता हैं, लोकनिंदामें मौन धारण करनेवाले हैं और कामवार्ता से रहित हैं। ऐसे साधु ही जगतसे स्वयं तिरने और दूसरों को तारने में समर्थ हैं। पंचेद्रियोंके विषयों में आसक्त तुम्हारे समान विप्र कदापि साधु नहीं कहे जा सकते । ६५६८ | हे द्विज पुत्रों ! साधुकी निंदा करते हुए तुम्हारी जिह्वाके सैकड़ों टुकड़े क्यों नहीं होगये ? इसका हमको बड़ा आर्य है | ६८ | श्रावकके ऐसे वचन सुनते ही द्विजपुत्र बड़े कुपित हुए । क्रोधसे उनकी आंखें वा नेत्र लाल हो गये । जोशमें आके वे बोले - " इस मूर्खसे वाद विवाद करनेमें क्या फायदा है ? हम दिगम्बरोंसे ही जाकर वाद करेंगे" ऐसा कहके वे तो अपने घर आये और श्रावक वनकी ओर For Private & Personal Use Only Jain Edutan International चरित्र www.nelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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