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________________ प्रद्यम्न चरित्र मगधदेशमें तिष्ठे थे, उसी समय एक दूसरी मनोहर घटना हुई, जो इस प्रकार है:-३९-४०॥ मगधदेशके बाहर रमणीक वनमें श्रीनंदिवर्धन नामा मुनीश्वर शिष्यवर्ग सहित पधारे, जो || कामके नाश करनेवाले, सर्वशास्त्रोंके पारगामी, ज्ञाननेत्रके धारक, गंभीर वाणीके बोलनेवाले, अनेक प्रकारकी लब्धिकर शोभायमान और मनोगुप्ति वचनगुप्ति कायगुप्तिके पालनेवाले थे ।४१.४२। वे यथोचित क्रिया कर्म करनेके बाद बनमालीसे बिना पूछे वहां जो अशोक वृक्षके नीचे एक निर्जन्तु स्वच्छ शिला पड़ी हुई थी उसपर विराज गये और पठन करने लगे।४३.४४। इतने वनमाली आया और बगीचे की अद्भुत शोभाको देखकर अचंभित हो गया। परन्तु तत्काल ही उसने अशोक वृक्षके नीचे विराजे हुए मुनिराजको देखकर निश्चय कर लिया कि, यह सब इन्हींका प्रभाव है। मालीने मुनि महाराजको प्रणाम कर गुरुभक्तिसहित उनकी प्रदक्षिणा की।४५.४७। इसप्रकार जब नंदिवर्द्धन यतीश्वर सर्व शुभ लक्षणोंके धारक, समुद्रके समान गंभीर बुद्धिवाले, सुमेरुके समान स्थिर, पापरूपी वृक्षको उखाड़नेवाले अष्टमदरूपी गजको सिंहके समान परीषहरूपी बड़े २ वैरियोंको जीतनेके लिये महासुभटके समान, सर्व परिग्रह कर रहित, गुणसम्पदासहित, यथार्थ मोक्षमार्गके दर्शानेवाले, मतिश्रुतअवधिज्ञान से सुशोभित वहीं विराजे ४८-५०। जब मगधनिवासियोंको मालूम हुआ कि मुनिमहाराज उपवनमें पधारे हैं, तब वहांके जिनधर्मधुरंधर तथा जिन शासनश्रद्धालु सज्जन भक्तिभावसे वंदनाके लिये आये । उनके सिवाय बहुतसे लोग लोकलाजसे गये, बहुतसे दूसरोंके बुलानेके कारणसे गये और बहुतसे माध्यस्थ भावसे (समभावसे) कौतूहल देखनेके लिये गये। सो ठीक ही है, समस्त प्राणियोंके चित्तकी वृत्ति एकसी नहीं रहती ।५१-५३।। अच्छे २ वस्त्र पहने हुये और अनेक प्रकारके उत्सव करते हुए नगरवासियोंको वनकी तरफ जाते देखकर ब्राह्मणपुत्र अग्निभूति और वायुभूतिने विनोदके साथ किसी श्रावकसे पूछा, कहो ! अाज Jain Eupen Interational For Private & Personal Use Only ww. l elibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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