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वरित्र
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प्रद्युम्नकुमार अपने घर अावेगा, तब उपयुक्त सब घटना होंगी इन सूचकों द्वारा समझ लेना कि ।१४-२५। उसका समागम होनेवाला है । और जो तेरी मनोहर हथेलीपर बैठा हुआ है वह जगन्मुन्य प्रसिद्ध नारद मुनि है । यह नवमा अधोवदन नामका नारद मोक्षमार्गमें निपुण है, देशव्रतका धारक है और यहां कृष्णनारायणके हितार्थ उसके पुत्रकी वार्ता सुननेको आया है, मो मेंने संक्षेप में वर्णन की है ।२६.२८॥
तब पद्मनाभि चक्रवर्तिने सीमंधर स्वामीको नमस्कार करके निवेदन किया, हे कृपासिन्धु ! श्राप दया करके कृष्णपुत्र प्रद्युम्नकुमारका सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाइये कि, उसका जन्मान्तरमें दैत्यसे बैर होनेका क्या कारण है, और उसने उस समय क्या २ पुण्य पाप उपार्जन किये हैं।२६-३०। तब सीमंधर स्वामीने सप्तभंगीस्वरूप दिव्यध्वनिसे उत्तर दिया-३१॥
जम्बूद्वीपमें जगत्प्रसिद्ध भरतक्षेत्र है जिसमें मगध नामका रमणीय देश है। उस देशमें शालिग्राम नामका एक विख्यात नगर है । एक समय इसी नगरमें सोमदत्त नामका एक रूपवान विप्र रहता था, जिसको अपनी जाति और कुलका बड़ा घमण्ड था। उसकी अग्निला नामकी सुप्रसिद्ध रूपवती स्त्री थी।३३-३४। इनके दो पुत्र थे जो वेदशास्त्रके पारगामी, नवजवान, धनधान्यसम्पन्न, बलवान, अपनी जाति वा कुलका घमण्ड रखनेवाले, तीन जगतको तृणक समान गिननेवाले और विद्याविभवसंयुक्त थे । प्रथम पुत्रका नाम अग्निभूति और दूसरेका वायुभूति था। ये दोनों भाई मिथ्यामतावलम्बी और जैनधर्मसे सर्वथा परांगमुख थे। ३५-३७ । इन्होंने बहुतसे अज्ञानी भोलेभाले जीवोंको बहका करके अपने धर्ममें शामिल कर लिया था। कारण यह स्वभावसे ही पदार्थो के स्वरूपको विपरीत घटित करनेमें निपुण थे।३८। ये दोनों भाई प्रसन्नचित्त, स्मृतिशास्त्रके ज्ञाता और धर्मतीर्थ के प्रवतक श्रीवासुपूज्य तीर्थकरके समयमें हुये थे। जब ये घमण्डी अग्निभूति वायुभूति
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