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सात्विक मुनि तिष्ठ े हुए थे। उन्होंने जब द्विजपुत्रोंको घमंड में बड़बड़ाते हुए जाते देखा, तब पूछा, कहो तुम दोनों बड़े अभिमानसे कहां जारहे हो तब ब्राह्मणोंने बड़े जोशसे जवाब दिया “हम नन्दि- चरित्र वर्द्धन नामके यतिको वाद में जीतनेके लिये जारहे हैं" । ८३-८५ तब सात्विक मुनिने विचारा कि नन्दिवर्द्धनमुनिवर दया के सरोवर हैं, अनेक यतिरूपी हंसोंकर सेवित हैं, और तपश्चरणकर अत्यन्त निर्मल हैं। उस सरोवरको गँदला करने के वास्ते ये दोनों भैंसे घमंड में चकचूर होकर जारहे हैं, यह ठीक नहीं है । इन्हें किसी तरहसे यहीं रोक देना चाहिये ऐसा विचारकर उन्होंने कहा, द्विजपुत्रों ! इधर मेरे पास आओ और कुछ वाद विवाद तुम्हें करना हो, मुझसे करो। मैं बहुत शोघ्र तुम्हारी अभिलापा पूर्ण करूगा ८६८८ | जब विषपुत्रोंने मुनिके शास्त्रार्थ करनेके वचन सुने, तब वे मदोन्मत्त होकर उनके पास आये और बोले, अरे लज्जाहीन ! वेदशास्त्रपराङ्मुख ! तू क्या निद्य वचन निकालता है, यदि तू ज्ञानवान, गुणवान विद्यावान हो तो हमसे वाद विवाद करनेके लिये तैयार हो जा । ८९६१ । क्रोधमें लाल ताते होकर ब्राह्मण फिर बोले, रे मूढ़ ! गर्वके वचन मुळे हसे निकालने में क्या सार है विद्वानों की मंडली के
तू हमें विवाद में परास्त करेगा ऐसी कल्पना करना भी निरर्थक है । कारण हम पहले ही कह चुके हैं कि तेरी क्या सामर्थ्य है दूसरी बात यह है कि, जब अपना विवाद होने ही वाला है तो जो हारेगा उसपर क्या दण्ड किया जायगा इस बातका भी निश्चय प्रथम ही सज्जन मण्डली में हो जाना आवश्यक है। कारण बिना किसीकी साक्षी के विद्वज्जनोंको विवाद करना उचित नहीं है । ९२९५ । तब सात्विक मुनिने उत्तर दिया, द्विजपुत्रों ! तुम्हें जो रुचे, सो प्रतिज्ञा विद्वानों की सभा में करो, मुझे वह स्वीकार है | ६ | तब द्विजोंने जोरसे उत्तर दिया, हे शठ ! “यदि विद्वानों के सामने तू हम दोनों को विवाद में हरा देगा, तो हम इस बातका नियम करते हैं कि, तुम्हारे चेले बन जांयेंगे और यदि हम दोनों भाई तुम्हें हरा देंगे, तो सच समझो तुम इस देशकी सरहद से बाहर निकाल दिये जाओगे,
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