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क्षणमात्र नगरमें नहीं रहने पायोगे,” तब सात्विकि मुनिराजने कहा, विप्रों ! जो कुछ तुम दोनोंने कहा है, वह मुझे अक्षरशः प्रमाण है। इसप्रकार द्विजपुत्र और मुनिराज सभाके सामने वचनबद्ध हुए || चरित्र और स्पर्धा करते हए तिष्ठे।।७-३०१॥
जब नगरवासियोंने सुना कि मुनि और द्विजपुत्रोंका विवाद होनेवाला है, तब वे दौड़े चले आये। शास्त्रार्थ के सुननेकी अभिलाषासे मनुष्योंकी भीड़ लग गई। चहुँ ओरकी जगह खूब भर गई। जब सभामें सब लोग अच्छी तरहसे बैठ गये तब प्रसंग देखकर मुनिराज योग्यतासे और सरसतासे बोले, द्विजपुत्रों ! उद्धतताको छोड़कर प्रथम तुम्हीं मुझसे कोई प्रश्न करो। यदि किसी शास्त्रमें कहीं भी किमी प्रकारका तुम्हें संदेह रहा हो तो अपनी शंका प्रगट करो मैं उसका उत्तर दूंगा।२-५॥ द्विजपुत्रोंने मुनिके वाक्य बड़े घमण्डसे सुने और अभिमानके आवेशमें आके मुस्कराके कहा-रे मूढ़ पहले हमको नमस्कार कर और फिर यदि तेरे दिलमें किसी पदार्थ के स्वरूपके समझनेमें सन्देह रहा तो हमसे पूछ । यदि तू हमारे चरणोंमें झुकेगा और अपना सन्देह प्रगट करेगा तो हम अवश्य तेरे प्रश्नका उत्तर देंगे।६-८। मुनिवर इन (असभ्यताके) व वनोंको सुनकर रंचमात्र क्रोधित नहीं हुए और बोलेः"ठीक है, मैं तुमसे पहले एक बात पूछता हूँ कि तुम दोनों कहांसे आये हो ?”। । मुनिके प्रश्नको सुनते ही द्विजपुत्र हँसे और बोले रे मूढ़ ! क्या तू इतना भी न जान सका हम ग्रामसे आये हैं यदि इतनी मोटी बात भी न जानी तो कुछ न जाना । मालूम होता है कि तू सूर्य चन्द्रमाको भी न जानता है ।१०-११॥ तब सात्विक मुनिराजने जवाब दिया:-मैं यह अच्छी तरहसे जानता हूँ कि तुम दोनों ग्रामसे आये हो और सोमशर्मा विपके पुत्र हो इत्यादि तुम दोनोंके विषयमें में सब कुछ जानता हूं। परन्तु मेरा यह प्रश्न नहीं है, में तो यह पूछा है कि “परभवकी किस पर्यायको छोड़कर तुम दोनों यहां आये हो” ।१२-१३। तब विप्रपुत्र वोले-क्या कोई ऐसा ज्ञानवान है जो पूर्वभवकी बात
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