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बता सके जो तू भरी सभा के भीतर ऐसा प्रश्न करता है, इसीसे जाना जाता है कि, हमारे कहे अनुप्रद्युम्न सार वास्तव में तू शठ ही है ।१४-१५। तब मुनिमहाराज बोले, विप्रों! यदि तुम अपनी ही बात नहीं बता सकते हो, तो दूसरे की बात क्या बता सकोगे ? हम तुम्हारे साथ क्या विवाद करें | १६ | तब विप्रोंने उत्तर दिया, हम तो परभवकी बात कुछ कह नहीं सकते हैं । हे मूढ़ ! यदि तू जानता है, तो जल्दी कह ! | १७| तब मुनिराजने कहा, द्विजपुत्रों में समस्त सभाके समक्ष में तुम दोनोंके भवान्तर वर्णन करता हूँ | तब विप्रकुपित हुए और बोले, हे दिगम्बर शठ यदि तू यथार्थ जानता हो, तो कह ? तब सात्विक मुनिराजने समस्त सज्जन मण्डलीमें कहा कि, मैं इन दोनों विप्रपुत्रोंकी भवान्तरकी वार्ता कहता हूँ, जो विश्वास करने योग्य है, अतएव ध्यान से सुनो - १८-२० ।
पहले इस शालिग्राम नामके गांवमें प्रवर नामका एक धनाढ्य ब्राह्मण रहता था, जिसका खेती करने का धन्धा था | २१| उसके पास एक बड़का वृक्ष ( वटवृक्ष) था, जिसके नीचे कर्म के योगसे दो श्याल रहा करते थे | २२ | मृतकों का मांस खाकर वे अपनी गुजर करते थे और आनन्दसे रहते थे । Fa काल व्यतीत होनेके पश्चात् एक दिन प्रवर ब्राह्मण (किसान) जब जलवृष्टि होने के आसार दिखाई पड़ रहे थे, हल बखर यदि खेती के सामानकी चीजें और नौकरों चाकरों समेत खेत की तरफ जा रहा था । जब रास्तेमें उसने आकाश की ओर दृष्टि की, तब बादल घटाटोप बाँधे हुए गड़गड़ाहट आवाज करते हुए गरज रहे थे और रंगविरंगे इन्द्रधनुष्यको खींच रहे थे । मानों संसारको ताप करने वाले शत्रुस्वरूप ग्रीष्म ऋतुको ही बुड़क रहे हैं । सीत्कार शब्दमिश्रित सनसनाहट शब्द करती हुई पवनने पृथ्वीतल कम्पायमान कर रक्खा था । इतने ही में मेघोंसे लगातार पानी बरसने लगा। जिससे प्रवर विप्र पानीसे बिलकुल भींज गया, उसे बड़ा दुःख हुआ । उसके हाथ पांव ढीले पड़ गये, इसकारण वह खेतका सामान वहीं पटकके कांपता हुआ अपने घर लौट आया। उसी समयसे ७ दिनतक लगातार
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