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प्रद्युम्न
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अपनेक जगह की है, परन्तु कहीं भी ठिकाना नहीं लगनेसे यह मेरे पास पूछने को आया है । ६७-६८ । जिनेश्वर के वचनों को सुनकर चक्रवर्तीने पुनः प्रश्न किया, भगवन्! आपने जिस कृष्णका नाम लिया है, उसका पराक्रम, बल, कुलादि कैसा है ? निवासस्थान कहां है ? उसका पुत्र कहां है ? किस बैरीने उसका हरण किया है ? वह अपने पिताके पास लौटकर कब आयेगा ? ये समस्त वृत्तान्त आप वर्णन कीजिये । ६९-२००। तब अनन्त लक्ष्मी के स्वामी श्रीसीमंधर जिनेन्द्र ने दिव्यध्वनि द्वारा उत्तर दिया, बुद्धिशाली राजन् ! तूने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है, जिसके वृत्तान्तको सुनने से श्रोताका पाप नाशको प्राप्त होता है अतएव एकाग्र चित्त होकर सुनो, मैं वर्णन करता हूँ - |२०११
भरतक्षेत्र में द्वारिका नामकी एक नगरी है, जिसमें तीन खण्डका स्वामी (द्ध' चक्री) कृष्ण नारायण राज्य करता है, यह राजा यादववंशियों का श्रृंगार है और हरिवंश में शिरोमणि है । इसकी प्राणप्रिया रुक्मिणी रानी है । इतना सुनकर चक्रवर्तिने पुनः निवेदन किया, भगवन् ! आप प्राणियोंकी वांछा पूर्ण करनेमें कल्पवृक्षके समान हो, और मेरी अभिलाषा कृष्णनारायण के पुत्रके चरित्रको श्रवण करनेकी है । इसलिये दया करके उसका चरित्र आदिसे अन्ततक वर्णन करें । चक्रीकी प्रार्थना को सुन कर सीमंधरस्वामीने कहा, हे भूपाल ! मैं कृष्णपुत्र ( प्रद्युम्न ) का पापका नाश करनेवाला चरित्र वर्णन करता हूँ, ध्यान से सुनो-२-६ ।
द्वारिकापुरीमें यदुवंशियोंके कुलमें विचक्षण कृष्णनारायण राज्य करते हैं, जिनकी रुक्मिणी नामकी जगद्विख्यात रानी है । रानीको एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसे वह साथमें लेकर जन्मसे दिन रात्रि के समय महल में सो रही थी । उस समय पूर्वभवका एक दुष्ट बैरी दैत्य उस बालकको हरकर ले गया सो उसने तक्षक पर्वत पर खदिरा वीमें ले जाकर तथा पुरातन बैरको चितारकर एक बड़ी भारी शिला के नीचे दाब दिया। पीछे उसी जगह विद्याधरोंका राजा कालसंवर अपनी
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