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अयम्न
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ह २ काल हैं, जिसमें वसर्पणीके पहले काल में मनुष्योंका शरीर तीन कोसका और आयु तीन पल्प की होती है । दूसरे काल में मनुष्यों का शरीर दो कोसका और आयु दो पल्यकी होती है। तीसरे काल में शरीर १ को ऊंचा और आयु एक पल्यकी होती है । ( वर्तमान ) चौथे कालमें युगकी आादिमें प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ जिनेश्वर हुए थे, जिनकी आयु चौरासीलाख पूर्वकी थी और शरीर ५०० धनुष ऊंचा था इनके पीछे बहुतमा समय व्यतीत होनेपर श्री अजितनाथादि मोक्षमार्ग के परमोपदेशक १ तीर्थंकर हुए हैं और उनके पश्चात् अब अवसर्पिणीके चौथे कालमें जो कि भारतवर्ष में प्रवर्त रहा है, हरिवंशको शोभाको बढ़ाने वाले श्रीनेमिनाथ स्वामी २२ वें तीर्थंकर जन्मे हैं । इनके समय में मनुष्यों की देह १० धनुष उंची है । ८२-८६ । हे राजन् ! यह देशव्रतका धारक नारद वहींसे मेरे पास
या है। चतुर्थकाल बीत जानेपर पांचवाँ काल आवेगा, जिससे मनुष्योंका शरीर ७॥ हाथ ऊंचा होगा और आयु १०० वर्षकी होगी। पश्चात् छठा काल यावेगा जिसमें मनुष्योंका शरीर १ हाथ ऊ चा होगा और आयु १६ वर्षकी होगी । ६० ९२ । यह सब कालचक्र के अनुसार घटा बढ़ी हुआ करती है। भगवानकी वाणी सुनकर पद्मनाभि चक्रवर्तीने पुनः प्रश्न किया -- भगवन् ! ये नारद इतने २ बड़े पर्वताको उल्लंघन कर जिसका संकल्प भी नहीं किया जा सकता, ऐसे कठिनता से प्राप्त होने वाले विदेहक्षेत्रमें कैसे किस कामके लिये और किसके पास आया है सो आप दयाकर प्रगट कीजिये । इस प्रकार जब रथांगके स्वामी पद्मनाभिचक्रवर्तीने प्रश्न किया, तब सीमंधरस्वामीकी बारह सभा के प्राणियों की धार्मिक रुचिको बढ़ानेवाली मनोहर दिव्यध्वनि खिरी - - १६३-६६ ।
जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्र से यह नारद हरिवंशके उसका पता पूछने के लिये मेरे पास आया है । चित्त उनके पुत्र के हरणकी खबर सुनकर बहुत ही
राजा कृष्ण नारायणके पुत्रकी खोज में निकला है श्रीकृष्णसे इसकी इतनी गाढ़ी प्रीति है कि, इसका कुलित हो रहा है । इसने कृष्णपुत्रकी खोज
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