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परित
विचार कर नारद सीमंधरस्वामीके सिंहासनके नीचे जाकर निर्भय बैठ गये ।६७-७०। उसी समय जो चक्रवर्ती जिनेश्वरके साम्हने बैठा हुआ था, उसे नारदको सिंहासनके तले बैठा हुआ देख बड़ा आश्चर्य हुा । उसने अपना मस्तक बारंबार हिलाकर और बड़ी देरतक सोच विचार करके नारदको उठाकर अपनी हथेलीपर रखलिया ।७१-७२। यह कौन है ? और किस जातिका कीड़ा है ? जिसकी देहका श्राकार मनुष्यके समान है ऐसा विचार करते २ उस चक्रीको हृदयमें सन्देहको दूर करनेवाली यथार्थ बुद्धि उत्पन्न हुई कि जिनेश्वर समझमें विराजमान हैं तो भी मुझे सन्देह क्यों हो रहा है ? हाथमें पहने हुये कंकणको देखनेके लिये पारसीकी तलाशी करनी उचित नहीं है ( कर कंगनको पारसी क्या ?)।७३-७४। ऐसा विचारकर पद्मनाभी चक्रवर्तीने सीमंधरस्वामीको नमस्कार करके विनयपूर्वक पूछा, भगवन् ! मेरे चित्तमें एक भारी संदेह उत्पन्न हुआ है वह यह है किः-आपने चार गति वर्णनकी है, अर्थात् देवगति, मनुष्यगति तिर्यंचगति और नरकगति, सो इन चारोंमेंसे यह जीव किस गतिका धारक है। ? ७५-७६। तब देवाधिदेवकी दिव्यध्वनि हुई कि बुद्धिमान राजन् । सुनो ! यह मनुष्य है और भरतक्षेत्रमें उत्पन्न हुआ है ।७७। इसका नाम नारद है, यह पृथ्वीपर विख्यात बड़ा ज्ञानवान और चतुर है, श्रीकृष्णनारायणपर इसका अत्यन्त स्नेह है ७८। जिनेन्द्रकी वाणीको सुनकर चक्रवर्तीने पुनः प्रश्न किया हे नाथ ! क्या भरतक्षेत्रमें इसीप्रकारके मनुष्य होते हैं ? मैंने तो इसे एक प्रकारका कीड़ा समझा था और आपके सिंहासनके तले बैठा देख कहीं किसीके पांवके तले अाकर मर न जाय, ऐसा विचार कर अपने हाथकी हथेलीपर उठाकर रख लिया था (७६.८०। तब जिनेन्द्रकी दिव्यध्वनि खिरी की, हे राजन् ! भरतक्षेत्रमें इस समय अवसर्पणीकाल वरत रहा है, इसके पीछे वहां जैसा होगा, सो सुनो-८॥ ___ भरतक्षेत्रमें उत्सर्पणी और अवसर्पणी कालका परिवर्तन हुआ करता है। इनमें प्रत्येकके अवान्तर
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