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चरित्र
सीमंधरस्वामीके दर्शनोंसे नारदजीको अत्यन्त आनन्द हश्रा। प्रदक्षिणा आदि करके वे जिनेश्वरकी इस प्रकार स्तुति करने लगेः-“हे देवाधिदेव आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है। आप चतुर्निकायके देवोंकर सेवित हो, कामरूपी गजराजको सिंहके समान तथा भव्यजीवरूपी कमलोंको सूर्यके समान हो, आपके कर्मकलङ्क क्षीण हो गये हैं और मोह क्षीण हो गया है, अतएव आपको नमस्कार है ।५८-६०। आपके चरणकमल सुर असुर देवोंकर वन्दित हैं, आप मोहरूपी अन्धकारको नाश करने के लिये अद्वितीय चंद्रमा हो और संसाररूपी वनको दग्ध करनेके लिये दावानलके समान हो, इसलिये आपको मेरा नमन है। आप मोक्षरूपी फलके अभिलाषी हो, केवलज्ञान नेत्रके धारक हो, स्याद्वादवाणीके प्रकाशक हो, धर्मतीर्थके स्वामी हो और मोक्षपदको प्राप्त करनेवाले हो इसलिये आपको मेरा अष्टांग नमस्कार है ।६१.६३। आप अनध्यवसाय अज्ञानरूपी समुद्र के पारंगत हो, संसार समुद्रमें डूबने वाले भव्यजीवोंकी रक्षा करनेवाले हो सप्ततत्त्वोंके ज्ञाता दृष्टा हो अनंतवीर्यके धारक हो इसकारण आपको मेरा सविनय प्रणाम है। आप शांतिके कर्ता शंकर हो पापके हर्ता हर अर्थात् महादेव हो भवभवान्तरके सचित पापपुजकोनाशकरनेवालेहो और केवलज्ञानकीमूर्ति हो इसलियेयापकेचरणारविंदमें मेरा नमस्कार है । ६४-६५। आप गर्भमें आये तब रत्नोंकी वर्षा हुई अतएव हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा) हो आप ही ज्ञानद्वारा लोकमें व्याप्त होनेसे सत्याथ विष्णु हो आप ही भक्तजीवोंको चिन्तित पदार्थ देनेवाले कल्पवृक्षके समान हो इसलिये हे जिनेन्द्र ! अापको नमस्कार है।६६। इसप्रकार भांति २ के वचनोंसे सीमंधरस्वामीकी स्तुति करके नारदमुनि (वारह सभामें) मनुष्योंके कोठेकी तरफ बैठने के लिये गये। परंतु वहांकी छवि को देख करके विचारने लगे यहां तो (बड़े लम्बे चौड़े ऊंचे) पांचसौ धनुषकी कायवाले मनुष्य बैठे हुये हैं और मेरा शरीर केवल दश धनुष ही ऊंचा और शक्तिहीन है। कहीं मैं इनके पांवके नीचे आकर दब गया तो मेरी मौतकी निशानी है इसलिये मुझे जिनेन्द्रके चरणकमलोंके पास ही बैठना ठीक है ऐसा
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