________________
L
-:
--
र
चरित्र
.
कर उनका स्तवन करूंगा, पश्चात् तेरे पुत्रका सम्पूर्ण चरित्र सुनकर मैं तुझे धोरज बँधानेके वास्ते | बहुत जल्दी आऊंगा, तू वृथा ही चिन्ता मत कर। संदेह न कर, मैं अवश्य पाऊंगा। इस प्रकार नारदजीने रुक्मिणीका समाधान किया ।४०-४५। उससे मधुर वार्तालाप करके वे देशान्तरको खाना हो गये।
नौकर चाकरोंने ऊंचा मुंह उठाकर आकाशकी ओर देखा, तो मालूम हुआ कि, नारदजी सूर्य के विमानसे भी दूर निकल गये हैं। पीछे थोड़ी देर बाद लोगोंने देखा, तो नारदजी इतने दूर निकल गये थे कि, किसीको न दिखाई दिये।४६-४७।
मुनि सुमेरु पर्वतपर पहुँचे । रात्रिका समय निकट अाया जान उन्होंने वहीं संध्यावन्दना की, प्रफुल्लित चित्त होकर अकृत्रिम चैत्यालयोंके जिनविम्बोंकी बंदना की, जो चारण ऋद्धिके धारक मुनीश्वर वहां विराजे थे, उनकी गुरुभक्ति महित वंदना की ।४८-४९। और सुमेरुगिरिपर ही रात्रि व्यतीत की। प्रातःकाल होने पर संध्यावंदनादि नित्यक्रिया तथा जिनमंदिरोंकी बंदना करके वे वहांसे शीघ्र रवाना हो गये ।५०। और क्षणमात्र में वे पुण्डरीकिणी नगरीमें जा पहुँचे, जिसे देखकर वे चकित हो गये । कारण ऐसी नगरी उन्होंने कभी नहीं देखी थी।५१। जहां धर्मचक्र प्रवर्तक तीर्थकर सदा काल विराजमान रहते हैं जहां छह खंड पृथ्वीके स्वामी चक्रवर्ती और बलदेव, वासुदेवादिक सदाकाल विराजते हैं और जहां सुर असुर देवादिक जिनभक्तिपरायणतासे सदैव आया करते हैं, हम उस नगरी की शोभाको कहांतक वर्णन करें। नारदजीने दूरसे समवशरणको देखा, जिसमें श्रीसीमधरस्वामी विराजमान थे और जिनकी देव, देवेन्द्र, खगेन्द्रादिक, पूजा वंदना कर रहे थे। समवसरणको देखनेसे नारदजीको मालूम हुआ, तीनलोककी सारभूत सामग्री यहीं आकर इकट्ठी हुई है। उन अनेक प्रतिज्ञाओं के पालक ब्रह्मचारी नारदजीने आकाशसे नीचे उतरकर भक्तिपूर्वक समवसरणमें प्रवेश किया ।५२-५७।
Jain Educatintamational
For Privale & Personal Use Only
www.l
ibrary.org