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________________ प्रद्युम्न ८१ मेरी सब आशा टूट गई। पुत्रको हरनेवाले दुष्टने बड़ा धोखा दिया । आपके विद्यमान रहते हुए भी । मेरे सिरपर ऐसा दुःख टूट पड़ा, अामर्यकी बात है। १६। नारदजीने ज्यों त्यों अपना दुःख दावकर | रुक्मिणीसे कहा बेटी खड़ी हो जा,.दुःख वा चिन्ता रंचमात्र मत कर । कारण जो ज्ञानवान होते हैं, वे गिरी हुई गुमी हुई वा नाशको प्राप्त हुई चीजकी चिंता नहीं करते हैं ।१७-१८। तू ऐसा मत समझ कि, मुझे ही आज ऐसे दारुण दुःखने सताया है, पहले ऐसा दुःख किसीको नहीं हुआ। ऐसा विचार यदि तेरे चित्तमें हो, तो उसे निकाल डाल ।१९। प्राणीमात्रको पुत्रके वियोगसे ऐसा ही दुःख होता है, जो दुर्निवार है ।२०। क्या तूने पुराणों में नहीं सुना कि, बड़े २ राजा महाराजाओंको पुत्रके वियोगसे दुःख हुआ है ।२१। जिसका तीन खंडका स्वामी श्रीकृष्ण तो पिता और तेरे जैसी जगद्विख्यात माता है, किमकी सामर्थ्य है कि, उस बालकको मार डाले, ऐसा बालक छोटी उमरवाला भी क्योंकर हो सकता है ।२२। हे पुत्री कोई पूर्वजन्मका बैरी तेरे पुत्रको हरके ले गया है, तो भी वह अनेक प्रकारकी विभूति और सौभाग्यसहित तेरे पास आ जावेगा। जैसा शास्त्रों में लेख है कि, सीता सतीका भाई भामण्डल पैदा होते ही पूर्वकर्मके योगसे किसी बैरी द्वारा हरा गया था, तो भी उसका विद्याधरके महलोंमें पालनपोषण हुआ था। वहीं वह बड़ा हुआ था और पीछे विद्या विभव ज्ञान विज्ञानसे विभपित होकर अपने घर आकर अपने माता पितासे मिला था। उसीत्रकार तेरा पुत्र भी तेरे पास कालान्तरमें अवश्य आ जायगा इसमें सन्देह नहीं है ।२३-२६। तब रुक्मिणी शोकको दूर करके बोली, महाराज ! मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ। आप ध्यान देकर सुनें:-मेरे सुभटोंने घोड़ों पर सवार होके बालककी नदी वा समुद्र पर्यन्त तलाशी की परंतु उसका कहीं भी पता नहीं लगा। तो भी मुझे आपके कल्याणकारी वचन प्रमाण हैं । आपने जैसा कहा है वैसा ही होगा कारण आप मिथ्यावादी नहीं हैं ।२७-२६। हे स्वामी आप मेरे मातापिताके ___Jaln EduMon international २१ For Private & Personal Use Only wwwrelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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