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वरित्र
को सिधारे हैं । अरहंत भगवानका पही कथन है कि, जो प्राणी जन्म लेता है वह नियमसे मरणको प्राप्त होता है और प्रत्येक जीव अपने २ कर्मानुसार सुख दुःख भोगता है ।५३-६५। हे स्वामी ! यमराजका छोटे बड़े सभीके साथ समान तपसे वर्ताव है ऐसा जानकर शोक और दुःखका त्याग कीजिये। क्योंकि शोक संसारका कारण है ।६६। शोक करनेसे मनुष्यका दुःख मिटता नहीं किन्तु बढ़ता है। जो बुद्धिमान पुरुष होते हैं वे किसी चीजके खो जाने लोप हो जाने वा किसी स्वजन परजनके मरण हो जानेपर शोक नहीं करते हैं। कारण शोक भूख और निद्रा इन तीनोंकी ज्यों ज्यों चिन्ता की जाती है ज्यों ज्यों इनका विचार किया जाता है त्यो त्यों इनकी बढ़ती हाती है। हे तीन खण्डके स्वामी यदि आप ही इस प्रकार चिन्ता व शोक करोगे तो आपकी प्रजा भी दुःखित तथा विकल हो जायगी। ऐसा जानके आपको शोक करना उचित नहीं है । क्या आपके समान ज्ञानवानोंको जो संसारके स्वरूपको भलीभांति जानते हैं, इसप्रकार शोक करना चाहिये ? कदापि नहीं।६७-७०। और इसमें सन्देह नहीं है कि, जो बालक यादवकुलमें उत्पन्न होता है, वह प्रायः सौभाग्यवान, बलवान
और दीर्घायुका धारक होता है ।७१। इसलिये हे राजन् ! आपके पुत्रको कोई बैरी हरके ले गया है, तो भी वह कहीं न कहीं सुखसे तिष्ठा होगा, सो कुछ दिन बाद आपके घर अवश्य अावेगा ।७२।
मंत्रियोंके समझानेसे राजाने शोकका त्याग करके चिंतातुर रुक्मिणीसे जिसका कि मुख सुन्दर बिखरे बालोंसे ढक रहा था, कहा-हे विचक्षणे ! तेरा.पुत्र दीर्घ आयु वाला है, इस कारण उसकी अकालमृत्यु कदापि नहीं हो सकती, ऐसा समझकर तुझे धीरज धारण करना ही उचित है। हे मृगनयनी इसमें मेरा ही प्रमाद हुश्रा है, जिसे कि मेरा पूर्णमासीके चन्द्रमाके समान सुन्दर पुत्र वैरीद्वारा हरा गया है । इसमें तेरा कोई अपराध नहीं है ।७३-७५। हे सुन्दर मुखे, देख अभी मैं दशों दिशाओं में अपने सुभटोंको तेरे पुत्र की खोज करनेके लिये भेजता हूँ। और बहुत जल्दी उसे तेरी
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