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प्रद्यम्न
चरित
चित्त होकर जमीन पर लोटने लगी. अपने हाथोंसे छाती पीटने लगी और केशोंको बिखराये हए वह दुःखिनी बाला दाढ़े मारकर रोने लगी-हाय ! हाय ! अब मैं क्या करूं कहां जाऊं और अपने मन को कैसे समझाऊं विलाप करती हुई रुक्मिणीको देखकर श्रीकृष्ण दुःखी होते हुए अपनी प्राणवल्लभा से बोले, देवी। मेरे ही प्रमादसे बालकका हरण हुआ है। मैं मूढबुद्धि अब क्या करू विधाताने मुझे बड़ा धोखा दिया ।४८॥५२॥ जब कृष्ण और रुक्मिणी दोनों पुत्रके मोहसे इसप्रकार दुःखित हो विलाप करने लगे, तब कुलपरम्परासे चले आये ऐसे वृद्ध मंत्रीगण शोक करते हुए उनके पास आये।
और राजा रानीको भक्ति वा विनयसे नमस्कार करके गद्गद्वाणीसे बोले-महाराज। श्राप संसारके स्वरूपको भली भांति जानते हो। जो जीव इस असार संसारमें जन्म लेते हैं, उनका आयुके अंत समय नियमसे मरण होता है । षट्खण्ड पृथ्वीको वशमें करनेवाले पहले जितने विद्याधर तथा भूमिगोचरी चक्रवर्ती और तीर्थंकर हो गये हैं, उन सबका आयुके अंत होनेपर कालने कवलाहार कर लिया है। पृथ्वीपर अब उनका नाम मात्र हो सुनाई पड़ता है। धर्मचक्र प्रवर्तक तीर्थङ्कर भगवान जो सुर असुरकर वंदित हैं, जिन्होंने केवलज्ञानरूपी दीपकसे तीन लोकके पदार्थोंको क्रमरहित प्रत्यक्ष देखा है और जो संसाररूपी समुद्रसे स्वयं तरने और अन्य भव्य जीवोंको तारनेमें समर्थ हैं, उनका भी परमौ. दारिक शरीर आयुके अंत समय कालका कालाहार बन गया इसीप्रकार महापराक्रम और महाशक्ति के धारक अनेक बलदेव, कामदेव, नारायण, प्रतिनारायण इस पृथ्वीतल पर हो गये हैं, जिनकी रक्षा सहस्रों हाथी, रथ, सुभट, घोड़े आदिसे होती थी परंतु वे भी यमराजके कठोर दांतोंसे दले गये और परलोकवासी बन गये। इसी प्रकार अपनी शक्तिका मान करनेवाले अन्यान्य योद्धा और महासत्वके धारक शूरमा पृथ्वीतल पर हो गये हैं परन्तु वे भी अपने २ कर्माधीन अन्तमें प्राणान्त हो गये हैं सुर असुर चक्रवर्ती विद्याधराधीश सिंह अजगर आदि जितने बलिष्ट और करतम जीव हुए हैं सब यमपुर
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