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________________ बाहर निकला और रणवासमें जाकर उसने इसका मूलकारण समझा, जिससे बहुत दुःखी होकर वह | कृष्णजीके पास लोट आया।२१.२४। और गुपचुप मस्तक झुकाके खड़ा हो गया। जब कृष्णजीने पूछा कि, कहो किस बातका कोलाहल हो रहा था, तब वह नौकर बड़े ही दुःखसे और गद्गद्वाणीसे बोला, हे प्रभो ! मैं क्या कहूं कुछ कहने योग्य बात नहीं है। तब कृष्णजी बोले, तू इतना व्याकुल क्यों हो रहा है वह वार्ता क्या ऐसी दुःखदायिनी है कि, उसे कहके भी सकुचाता है परंतु बिना कहे कैसे मालूम हो तब सेवक हाथ जोड़कर बोला, नाथ ! कहते हुए मेरा हृदय विदीर्ण होता है ।२५-२७। किमी दुष्टने रुक्मिणीमहारानीके बालकका हरण कर लिया है । वज्रपातके समान ऐसे वचन सुनते ही श्रीकृष्णजी, क्या ? क्या ? तू क्या कहता है ? इतना कहकर मूछित हो गये ।२८। जिस प्रकार वज्रके पड़ते ही वृक्ष पृथ्वीपर टूटकर गिर जाता है, उसी प्रकार ऐसी भयंकर घटना की खबर मात्रके सुननेसे उनका चित्त घायल हो गया और वे पछाड़ खाके जमीन पर गिर पड़े, जिमसे निकटवर्ती नौकर चाकरोंको ऐसा मालूम हुआ मानो कोई पर्वत ही औंधा हो गया है ।२६। जब नौकरोंने नानाप्रकारके शीतोपचार किये, तब मूर्छा दूर हुई। सचेत होकर पुत्र हरणकी बातके याद आते ही वे बहुत शोक और विलाप करने लगे। तथा ढाढ़े मारकर रोने लगे। नौकर चाकर भी चिंतातुर होकर आंसू बहाने लगे ।३०-३१। हाय हाय ! यह क्या हो गया, प्यारे पुत्र तू कहाँ चला गया तेरे बिना मेरा जीवन निःसार है। मेरे धन धान्य, दासी, दास, ग्राम, नगर, कर्वट, खेट मटंवादिक किस कामके, मेरे सैकड़ों राजा सेवक हों तो क्या अथवा मेरे पास हजारों हाथी घोड़े रथ अादिक हों, तो क्या जब तक तू था तभी तक ये सब मेरे थे। अब तेरे बिना मुझे ये तो क्या सब संसार असार दीख पड़ता है। बेटा मुझ पुण्यहीनको यहीं छोड़कर तू कहां चला गया में तेरे बिना दीन और दुःखी हो गया। जब तू ही नहीं है, तो अब मेरा इस संसारमें कौन बंधु है पुत्र शीघ आ और दुखरूपी सागर में डूबते हुए अपने पिताको बचा। Jain Educat www.jlelibrary.org For Private & Personal Use Only international
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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