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प्रद्यन्न
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रहा है धाय दूध पिलानेके लिये उसे अपने पास लेगई है अथवा नौकरउसे प्रेम से खिलाने के लिये कहीं ले गये हैं । । ५ -१०। ऐसे नाना प्रकारके संकल्प विकल्प करके अत्यन्त मोह रखनेवाली उस रुक्मिणीने फिर विचार किया कि, हाय ! निर्दयी देवने मुझ ममलाको जल्दी ही नष्ट कर दिया। अब मेरे जीवन में क्या सार है। ऐसा सोचकर एकदम पछाड़ खाकर भूमिपर गिर पड़ी। यह देखकर नौकरोंने उसे हरिचन्दनादिकके शीतोपचारसे सचेत किया ।११-१३। सो सचेत होकर वह अपने पुत्रकी याद में छाती पीटने लगी और
मारकर रुदन करने लगी उस विज्ञापको सुनकर नौकरों का चित्त भी करुणा से भर आया । १४ । हाय हाय मेरे घुंघराले बालों वाले सुन्दर नासिकावाले और पूर्णचंद्र के समान सुन्दर मुखवाले पुत्र तू कहां चला गया बेटा तेरे नेत्र कमलके समान सुन्दर थे, तेरी भौंहें विकारयुक्त अर्थात् टेड़ी थीं, तेरी सुन्दरता कामदेवकी फाँसी के समान मोहक थी और सबको भ्रम नेके लिये तू कर्मकी फाँसी ही था, तू कहां चला गया शंखके समान सुन्दर कण्ठवाले और गजकी सू' डके समान दृढ़ भुजाओं के धारण करनेवाले पूत्र तू कहां लोप हो गया जब इस प्रकार हाहाकार मचाती हुई रुक्मिणी उच्च स्वरसे रोने लगी, तब कृष्णके रणवासकी समस्त रानियें दासियें आदि भी रुदन करने लगीं । १५- १८ । तथा इसी प्रकार कृष्ण पुत्र हरण हो जानेके दुःखकारक समाचार सुनकर नगर निवासी जन भी विलाप करने लगे ।१६। सारे यादववंशियोंकी खोंसे सुखों की धारा बहने लगी, उनकी धारा प्रवाह की बूंदें ऐसी जान पड़ती थीं, मानो उन्होंने सूतसे पोई हुई मोतियोंकी मालायें ही धारण कर रक्खी हों ॥२०॥ अचानक और पहले कभी सुना नहीं, ऐसे दुःखदायी कोलाहलको सुनकर श्रीकृष्ण एकदम नींद से जाग उठे और पास के नौकरोंसे बोले, देखो तो सही, यह हाहाकार शब्दोंसे मिला हुआ रात्रिके पिछले भाग में क्या कौलाहल हो रहा है ? जाओ ! देखके, सुनके तथा चिल्लाहट के कारण को भली भांति जानके मुझे जल्दी खबर दो । कृष्ण महाराजकी आज्ञाको पाते ही एक दण्डधारी सेवक तत्काल
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