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________________ प्रद्युम्न चरि "परान दमति” अर्थात् पर शत्रुओं का दमन करनेवाला दीख पड़ता है, उसका नाम प्रद्युम्नकुमार रक्खा ॥१८९.१६॥ ज्यों २ प्रद्युम्नकुमार बड़ा होता गया, राजा कालसंवरके कुटुम्बी जनोंको तथा सर्व साधारण मनुष्योंको संतोष होता गया। राजाकी ऋद्धि धनादिक वृद्धिको प्राप्त होती गई। १६१। जिसप्रकार भ्रमर एक कमलसे उड़कर दूसरे कमल पर और दूसरेसे तीसरेपर बैठना है, उसी प्रकार प्रद्युम्नकुमार मनुष्यों के हाथों हाथ खेला करता था। भावार्थ-कोई भी उसे नीचे जमीन पर नहीं छोड़ते थे।१९२॥ उस समय किसी मनुष्यने तर्क किया कि, यह बालक राजाके कैसे हाथ लग गया ? बांझ स्त्रीके तो पुत्र होता ही नहीं है ।१६३। यह कौन है ? किसका पुत्र है और सुनसान जंगलमें राजा रानीके हाथ यह कैसे लग गया ।१६४। तब दूमरे मनुष्यने जवाब दिया, इस वार्तासे तुम्हें क्या प्रयोजन है जो कुछ राजा करता है, वह प्रमाण होता है । मुझे तो यह बालक पुण्यहीन नहीं दिखता है। कारण यदि यह पुण्यहीन होता, तो इसके कारणसे ऐसे महोत्सव क्यों होते । ९५-१६६। जिस वस्तुका चितवन करो वह पुण्यके प्रभावसे प्राप्त होती है, इसलिये भव्य जीवोंको भवभवान्तरमें सदाकाल पुण्यसंचय करना चाहिये ।१९७। पुण्यके माहात्म्यसे प्रद्युम्नकुमार केवल कनकमाला रानीको हो नहीं, किन्तु राजा कालसंवरकी अन्यान्य समस्त रानियोंको तथा सर्व साधारण स्त्रियोंको अत्यन्त प्रिय हो गया। भावार्थ-स्त्रीमात्र उसका प्रेमसे लाड़ करने लगी। इसी प्रकार स्वजन तथा परजनोंका भी प्रद्य म्नकुमार प्रेमपात्र बन गया ।१६८। पूर्वभवके बैरसे दुष्ट दैत्यने इतने छोटे बालकके साथ कैसा खोटा बर्ताव किया, उसे मारने में कमी नहीं की तो भी देशान्तर मेघकट नगरमें राजा कालसंवर के यहां वह बड़े सुखसे बढ़ने लगा, इसमें केवल पुण्य ही कारण है ।१६६। जिनके पास विशेष पुण्यका संचय होता है, उनको सहजमें ही अनेक प्रकारके सुख मिल जाते हैं। ऐसा जानकर हे भव्यजीवों ! सदाकाल Jain Educatinterational For Private & Personal Use Only www.jalorary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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