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महलको प्राप्त होते ही राजाने अपने मंत्रियों को बुलाया और उनसे कहा, मंत्रिगण ! मैं एक बड़े आश्चर्यकी बात कहता हूँ, सुनो-पहले किसीको भी मालूम नहीं था कि, मेरी कनकमाला प्राणनियाको गर्भ है । क्या तुमने पहले कभी सुना है कि स्त्रियों को गूढगर्भ भी होता है ? तब मंत्रियोंने राजाको सन्तोषित करनेके लिये कहा, जी हां महाराज ! हमने पहले कईबार सुना है कि, स्त्रियोंके गूढगर्भ होता है। वैद्यक श्रादि शास्त्रोंमें भी लिखा है ऐसा सुनते हैं और प्रत्यक्षमें भी कईवार यह बात देखी है ।१७५-१७९।
मंत्रियोंके वचन सुनकर राजा प्रसन्न हुआ। उसने कहा मेरी रानी कनकमालाके भी ऐसा ही गूढगर्भ था, इस कारण दैववशात् अाज वनमें ही उसके पुत्ररत्न उत्पन्न हुआ है । इस वास्ते रानीको बहुत जल्दी एक उत्तम प्रसूतिगृहमें ले जावो । सूतिकाको बुलवानो और प्रसूति समय जो २ कार्य करना पड़ता है, उसे करनेको कहो । तदनुसार मंत्रियोंने दाईको बुलवाया और प्रसूतिकर्मका (जापेका) कार्य प्रारम्भ करा दिया। पश्चात् आज्ञा दी कि, मंत्रीगण ! नगरमें तोरण, धजा, पताकादि बँधवाश्रो, जिन मन्दिरों में उत्सव करावो, याचकोंको इच्छानुसार (किमिच्छित) दान दो, जेलखानोंमेंसे सर्व शत्रु
ओंको छोड़ दो और छत्र धुंवर सिंहासनादि राज्य चिह्नोंको छोड़कर सब दान करदो ।१८०-१८५। राजाकी आज्ञानुसार मंत्रियोंने महोत्सवके साथ ध्वजा तोरणादिसे नगरीको सिंगार दी, सत्पुरुषोंका आदर सन्मान किया, बन्धुजनोंकी से । चाकरी की, कहां तक कहा जाय, समस्त प्राणधारियोंका दुःख दूर कर दिया। लवलेशमात्र किसीको किसी बातकी चिंता न रही।१८६-१८७। हे भव्य जीवों ! पुण्य की महिमा देखो, “जहां कहीं पुण्यात्मा जीव जाते हैं वहां उन्हें सहजमें ही इष्टमामग्री हाथ लग जाती है"।१८८। इस प्रकार उस दिन नगरमें बड़ा उत्सव मनाया गया और सातवें दिन उसका नाम निकालने के लिये सब कुटुम्बो सज्जन इकट्ठे हुए, महोत्सव किया गया और सबने यह जानकर कि यह बालक
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