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________________ ५०० पुत्र विद्यमान हैं कहीं यह बालक उन पुत्रोंका दास होकर जीया, तो यह बात मेरे जीमें बालके समान सदा चुभती रहेगी और मेरा जीवन भी निष्फल हो जायगा । १६३-१६५। हे प्रभो ! यदि मुझ मंदभागिनीने पूर्वभवमें कोई महत् पुण्य संचय किया होता, तो क्या मेरी कुक्षिसे (कुख से ) पुत्र की उत्पत्ति न होती ? मैं बड़ी भाग्यहीन हूँ, जो मेरे एक भी पुत्र नहीं है । नाथ ! भला दूसरे के पुत्रसे मुझे क्यों कर सुख हो सकता है ? दुःखदाई अन्यके पुत्रसे क्या ? इस प्रकार गद्गदवाणी बोलती हुई रानी कनकमाला रोने लगी । १६६-१६७। विलाप करती हुई रानीको देखकर करुणावान राजाका हृदय भर आया । वह बोला देवी ! संक्लेशको उत्पन्न करनेवाला दुःख मत कर, दुःख करने से तेरा मुखकमल व्यर्थ ही उदास हो जायगा, शरीर कृश हो जायगा और तेजहीन हो जायगा । देख ! तेरे सामने ही मैं इस पुत्रको युवराजका पद देता हूँ। ऐसा कहकर का संवर राजाने अपने मुखसे तांबूल (पानकी ललाईसे) बालकका तिलक कर दिया और कहा बेटा ! मैंने वास्तव में सदा के लिये तुझे युवराजके पद पर स्थापित किया है । अब मेरे राज्यका स्वामी या तो मैं हूँ या तू है, दूसरा कोई नहीं । ६६-७२ | ऐसा कहकर राजा कालसंवरने रानी कनकमालाको बालक सौंप दिया। रानीने अपने दोनों हाथ फैलाये और उसे ग्रहण किया | १७३ | तब रानीने बालकके मस्तक पर हाथ धरके उसे आशीर्वाद दिया कि 'बेटा! तू चिरंजीव रह, और अपने माता पिताको सुख दे” ऐसा कहकर रानी कनकमाला उस बालक का चुम्बन करके बड़ी आनन्दित हुई । १७४ ॥ इस प्रकार तक्षक वनकी खदिरा वीसे उस बालक को लेकर राजा कालसं पर विद्याधर और कनकमाला विद्याधरी दोनों विमानमें बैठकर अपने मेघकूट नामा नगरको रवाना हुए। ज्यों ही वे अपने नगरके पास पहुँचे त्योंही राजाके सन्मुख (पेशवाईमें) मंत्रियों सहित नगरनिवासी आये । राजा की आज्ञानुसार प्रजाने बड़ा उत्सव किया, और विभूति सहित राजाका नगर में प्रवेश कराया । अपने Jain Eduction International For Private & Personal Use Only प्रद्यम्न ६६ चरित्र www.nelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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