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________________ __ प्रद्युम्न चरित्र अचम्भा हुआ। वह विचारने लगा इसका क्या कारण है ? मैंने तो आजतक ऐसी शिलाको कम्पित होती नहीं देखी। तब बड़े कौतूहलमें आकर उसने कुछ तो अपने शरीरके बलसे और कुछ विद्याके बलसे उस शिलाको उठाई ।१५०-१५१॥ ज्योंही राजाने शिलाको दूर किया त्योंही उसने उसके तले एक सुन्दर बालकको लेटे देखा जो मुसकरा रहा था, चंचल था, जिसके केश घूघरवाले थे, हाथ पांव चलायमान हो रहे थे, जिसकी मुट्टियां बँधी हुई थी, जिसके नेत्र कमलके समान प्रफुल्लित हो रहे थे, जिसके शरीरकी कान्ति ताये हुए सुवर्णके समान थी जिसने अपने मुखकी सुन्दरतासे पूर्णमासीके चन्द्रको भी लज्जित कर दिया था, जिसकी भुजा कमलकी नालके समान कोमल थी, तथा शुभलक्षणोंसे चिह्नित थी।१५२-१५४। ऐसे सुन्दर, बलवान, धीरवीर, कान्तिवान, प्राणीमात्रके नेत्र वा मनको हरण करनेवाले, पूर्वभवके संचित पुण्य को प्रगट करनेवाले और चरमशरीरी होनेके कारण अपने कट्टर बैरी दैत्यको जीतनेवाले सर्वगुणसम्पन्न बालकको राजा कालसंवरने देखा और उसे जमीनपरसे अपने हाथोंमें उठा लिया। गोदमें लेकर विचारने लगा यह कोई उच्चकुलका उत्पन्न होनेवाला बड़ा भाग्यशाली मालूम पड़ता है। थोड़ी देर तक वह ऐसे ही विचार करता रहा। निदान उसने अपनी कनकमाला रानीसे कहा, देवी ! तेरे कोई पुत्र नहीं है और तुझे पुत्रकी बड़ी लालसा लग रही है, इसलिये ले इस सर्वांगसुन्दर सर्वगुणसम्पन्न बालकको तू ग्रहण कर । रानीने अपने प्राणनाथके अमृतके तुल्य मीठे वचनोंको सुनकर दोनों हाथ फैलाये । राजा उसके हाथमें बालकको छोड़नेवाला ही था कि, रानीने अपने हाथ पीछे खींच लिये । तब राजाने पूछा, प्रिये ! तूने अपने हाथ पीछे क्यों खींच लिये ।१५५-१६२। रानीका हृदय दुःखसे भर आया उसके नेत्रोंसे आंसूकी धारा निकलने लगी। वह हाथ जोड़कर बोली, प्राणनाथ ! हाथ संकोचनेका जो कारण है सो मैं बतलाती हूँ, सुनो-आपके घरमें दूसरी रानिशेसे जन्मे एहु Jain Educat interational For Privale & Personal Use Only www.filibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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