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चरति
मेघकूट नामका एक जगत् प्रख्यात नगर, धन, धान्यादिसे सम्पन्न और जिन चैत्यालयोंसे सुशोभित है। ऐसा जान पड़ता है, मानों इन्द्रकी नगरी अमरावती ही आ गई है ।।१३६.१३७। इस नगरमें कालसंवर नामकाराजा राज्य करता था, जो अपनी सम्पदा और गुणसे जगद्विख्यात् हो रहा था और जिसने शत्रुओंके बंशको निमूल कर डाला था ।१३८। इस राजाकी कनकमाला नामकी रानी थी जो सुप्रसिद्ध गुणवती तथा रूपवती थी। उसने अपनी सुन्दरतासे देवांगनाओंके रूपको भी जीत लिया था।१३६। राजा कालसंवर कनकमाला रानी सहित शत्रुओंकी बाधासे रहित (निष्कण्टक) राज्य करता था। एक दिन वह कनकमालाको लेकर तथा विमानमें बैठकर क्रीड़ाको बाहर निकला और रमणीक देशोंमें, भांति २ के वनोंमें, मनोहर मेरुके शिखरोंपर चित्तप्रिय गंगा नदीके तटोंपर, मनोज्ञ २ कदली वृक्षोंके वनोंमें तथा नन्दनवनादि बगीचोंमें तथा और भी अनेक रमणीक स्थानोंमें क्रीड़ा करता हुआ दैववशात् उसी तक्षक पर्वतपर पाया, जो बालक प्रद्य म्नकुमारसे सुशोभित हो रहा था।१४०१४३॥ वहां आते ही राजाका विमान जो सपाटेसे आकाशमें जा रहा था, एकाएक अटक गया। विमान पुण्यके प्रभावसे ऐसा कीलित हो गया कि, तिलमात्र वह आगे पीछे न हटा ।१४४। तब राजा कालसंवरको बड़ी चिंता हुई । वह विचारने लगा, कि क्या हो गया जो विमान चलता ही नहीं है ? क्या किसीने कील दिया है ? अथवा कोई ज्ञानविभूषित मुनीन्द्र नीचे विराजमान हैं ? किसी जिनमदिरमें अतिशयवान प्रतिमा विराजमान है ? अथवा यहां मेरा कोई शत्र या मित्र विद्यमान है ? वा कोई चरमशरीरी कष्टमें पड़ा हुआ है। देखें तो सही बात क्या है ? ऐसा विचारकर राजा अपनी प्राणप्रियासहित विमानमेंसे उतरा और उस पर्वतपर गया, वहां जाते ही उसको खदिरा वन दीख पड़ा ।१४५१४८। वनमें धंसते ही राजाने एक बावन हाथकी बड़ी शिला देखी, जो बालकके मुखकी हवासे (सांस के जोरसे) हिल रही थी ।१४६। इतनी बड़ी लम्बी शिलाको डगमगाती हुई देखकर राजाको बड़ा
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