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'चरित्र
देह संकटमें पड़ा हुआ है। इनमेंसे कोई कारण अवश्य है। अन्यथा मेरे विमानकी गति किसी प्रकार नहीं रुक सकती थी। पृथ्वी पर ऐसा कौन है, जो मेरे चलते हुए विमानको कील देवे ? विमान अटकानेवाला तीन भुवनमें मुझसे बचकर कैसे रह सकता है ? जिस दुराचारीने मेरे आकाशमें जाते हुए विमानको अटकाया है, उसे मैं नियमसे अभी यमराजके घर पहुँचा देता हूँ ।९७-१००। जब देत्यके अन्तरंगमें इसप्रकार विकल्पोंकी लहरें उछल रही थीं; उसी समय दुष्टबुद्धिके करनेवाले अवधिज्ञानसे (कुअवधिसे) उसने सब हकीकत जान ली कि, पूर्वभवमें जिस राजा मधुने पापबुद्धिसे मोहमें आकर मेरी स्त्री चन्द्रप्रभाका हरण किया था और उसके साथ प्रानंद उड़ाते हुए राज्यका कारवार चलाया था, वही दुराचारी उस पर्यायको छोड़कर (तपश्चरणके योगसे) स्वर्गको प्राप्त हुआ था, जहां उसने देवांगनाओं के सुख भोगे और फिर वहांसे चयकर पूर्वपुण्यके प्रसादसे वह रुक्मिणीके गर्भसे उत्पन्न हुआ है। पूर्वभवमें जान बूझकर इस दुष्टात्माने मुझे दुःख दिया था परन्तु उस समय तो में असमर्थ था, इससे मेरी कुछ न चली थी, परन्तु अब मैं दैत्य अवस्थामें हर एक प्रकारसे समर्थ हूँ और यह अभी बिलकुल असमर्थ बालक है। इसलिये में इस दुराचारीको अवश्य ही नष्ट करूंगा। यदि मैं इस बालकका विनाश न करू, तो मेरे दैत्यपनेको धिक्कार है ।१०१-१०६ दैत्यने बड़ी देरतक इस बातका आगा पीछा विचार किया। निदान वह निश्चय करके अाकाशसे रुक्मिणीके महलकी तरफ उतरा।१०७। वह क्या देखता है कि, महलके चारों तरफ शस्त्रधारी सुभट पहरा दे रहे हैं। इससे वह एकदम चकित हो गया। देरतक विचारनेके बाद उसे सुधि हुई कि, मैं तो दैत्य हूँ और ये मनुष्य हैं। वृथा ही मैं इनसे क्यों चोंक गया। क्रोधसे तप्तायमान होकर वह सुभटोंके पास आया और उन्हें तत्काल ही मोहकी निद्रा से अचेत करके महलके जड़े हुए कपाटोंके छिद्रमेंसे भीतर धंस गया। दैत्यने रुक्मिणीको भी मोहकी नींद से अचेत कर दिया, जिसका कि चित्त पुत्रके स्नेहसे भरा हुआ था। पीछे उसने बालकको सेज परसे
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