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चरित्र
होने लगे हैं, जैसे विमल लोगोंमें रहनेवाले भी तेजस्वी, मलिन, सुदशायुक्त और उत्तम पात्रोंका सेवन करनेवाले पुरुष शोभित होते हैं ।८४।
ऐसी रात्रिमें रुक्मिणी अपने पुत्रको लेकर प्रसूतिघरमें सो रही थी। उसके पास मंगलगीत गानेवाली तथा नाचनेवाली स्त्रियाँ भी सो रही थीं।८५। और रक्षाके लिये महलके चारों तरफ शस्त्रधारक सिपाहियों का पहरा लग रहा था।८६।कृष्णजी किसी दूसरे महलमें चिन्तारहित सुखसे नींद ले रहे थे और अङ्गरक्षक उनकी रक्षा कर रहे थे।८७। प्रफुल्लित चित्त होकर रुक्मिणी हजार स्त्रियों सहित अपने पुत्रका मुखकमल निहारती हुई पौढ़ी थी। जब रात्रिको अनेक उत्सव हुए, तब उसे सुख से भरपूर निद्रा आ गई। उसी समय रुक्मिणी आदिको कष्टका देनेवाला अन्य उपद्रव खड़ा हुआ, जो इस प्रकार है-८८-८९ ।
एक समय मोहके वशमें वा दुर्बुद्धिकी प्रेरणासे राजा मधुने अपने सामन्त राजा हेमरथकी स्त्री हरी थी, जिससे हेमरथ अपनी स्त्रीका हरण वा वियोग जानकर राजकाज छोड़कर सुनसान निर्जन वनमें भ्रमण करता फिरा था और स्त्रीके विरहमें पागल हो गया था। क्योंकि "मोह बड़ा दुःखदाई होता है ।” नगर वा वनमें घूमते घामते उसने अन्य मतावलम्बी तापसियोंकी सलाहसे पंचाग्नि का साधन किया और अन्तको तपके प्रभावसे मरके वह दैत्य हुा ।६०-९३। एक दिन जब यह दैत्य विमानमें बैठकर आकशमें लीलासे विचर रहा था, तब देवयोगसे उसी रात्रिको उसका विमान रुक्मिणी के महलके ऊपर पाया।९४। पवनके समान तेजसे जानेवाला विमान जब रुक्मिणीके बालकके ऊपर आया
और चलते २ आपसे श्राप रुक गया।९५। तब अपने विमानको अटका हुआ जानकर वह असुर विचारने लगा कि, या तो किसी दुर्बुद्धिने मेरे विमानको रोक दिया है।६६। या नीचे कोई प्राचीन अतिशयवान जन प्रतिमा है। कोई शत्रु है या अथवा कोई मित्र आपत्ति में पड़ा हुआ है, अथवा कोई चरमशरीरी
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