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________________ SHARE चरित्र सूर्यके अस्त होनेपर क्या २ फेरफार हुश्रा, सो संक्षेपमें वर्णन किया जाता है-कमलिनी संकुचित हो गई। चारों ओर अंधकार फैल गया ।७३॥ चक्रवाकी शब्द करती है और कलियोंपरसे भौंरे उड़कर पड़ते हैं, इससे ऐसा मालूम पड़ता है कि, कमलिनी रूपी स्त्री सूर्यपतिके वियोगमें रोती है, और आँसू टपकाती है। चक्रवाकीके शब्द, उसका रोना और भौंरोंका पड़ना, उसके आँसुओंका पड़ना है ।७४। संध्याके समय चक्रवाकी वियोगकी संभावनासे गिरगिर पड़ती है, पतिका मुखचुम्बन करके बारबार मूर्छित होती है, शरीरसे चिपटे हुए पतिका बारम्बार अवलोकन करती है और विरहके कारण सूर्यपर क्रोध करती है ।७५। सूर्यके समुद्रमें पतित होनेपर अर्थात् डूब जानेपर संध्यारूपी स्त्री उसके वियोगमें काष्ठका भक्षण करनेके लिये अर्थात् अग्निमें प्रवेश करनेके लिये विचित्रांवर शोभाकी धारण करनेवाली होगई । अर्थात् जिस प्रकार सती होनेवाली स्त्री नाना प्रकारके अम्बर (वस्त्र) धारण करके सजती है उसी प्रकार संध्याका अम्बर अर्थात् अाकाश रंगबिरंगी शोभाका धारण करनेवाला हो गया ७६-७७। और अपने सूर्यपतिके चले जाने पर दिशारूपी गणिका (वेश्या) अंधकारके साथ रमण करनेके लिये चित्रविचित्र वस्त्र धारण करके तैयार हो गई ७८। जब पृथ्वी पर अन्धकारका समूह फैला गया, तब ऊँचे नीचे सब स्थान सम हो गये अर्थात् एकसे दीखने लगे, जिस प्रकार मलिनात्मा राजाके होनेपर नाना प्रकारके आचरण करनेवाले ऊँचे और नीचे जातिके सम्पूर्ण लोगोंमें समता हो जाती है ।७६-८०। उस अंजनके समान काले अन्धकारके चारों और फैलनेपर दिशा, लता, आकाश, भूमि, पर्वत आदि कुछ भी नहीं रहे, सबका अभाव दीखने लगा। उस समय लोकमें नदी बन आदि किसीकी भी सीमा नहीं दिखती थी, जिस प्रकार मलीन राजाके राज्यमें प्रजा मर्यादाहीन हो जाती है ।८१८२। उस अन्धकारसमूहमें रात्रिको लोगोंके जलाये हुये तेज युक्त दीपक शोभायमान होने लगे ।८३। वे विमल, सुदशायुक्त (अच्छी बत्तीवाले) उत्तम पात्रों का सेवन करने वाले, दीपक ऐसे शोभित Jain Educe www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only interational
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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